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अनुकम्पी एवं परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र में संरचनात्मक अन्तर (Structural Differences in Sympathetic and Parasympathetic Nervous Systems)

अनुकम्पी एवं परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र में संरचनात्मक अन्तर (Structural Differences in Sympathetic and Parasympathetic Nervous Systems)

अनुकम्पी एवं परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र (Sympathetic and Parasympathetic Nervous Systems)

अनुकम्पी या सिम्पैथेटिक तन्त्रिका तन्त्र (Sympathetic Nervous System) वक्ष एवं कटि प्रदेशों (lumbar area) से निकलने वाले स्वायत्त तन्त्रिका तन्तुओं का बना होता है। इनके प्रिगैग्लियोनिक तन्तु स्पाइनल कॉर्ड के वक्ष कटि प्रदेशों से स्पाइनल तन्त्रिकाओं के अधर मूल में से होते हुए रैमस कम्युनिकेन्स द्वारा बाहर निकलते हैं। जबकि परानुकम्पी या पैरासिम्पैथेटिक तन्त्रिका तन्त्र (Parasympathetic Nervous System) स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के उन प्रिगैग्लिओनिक तन्तुओं का बना होता है जो कुछ विशेष क्रेनियल तन्त्रिकाओं (III, VII, IX व XI) तथा सैक्रल प्रदेश की स्पाइनल तन्त्रिकाओं द्वारा केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से बाहर निकलते हैं। गैग्लियोनिक अग्र तन्तु अंगों में सीधे प्रवेश करके उन्हें सम्भरणित करते हैं। अतः इनके गुच्छिका अग्र तन्तु विशेष रूप से लम्बे तथा गैग्लियोनिक पश्च तन्तु बहुत छोटे होते हैं। आइए इन दोनों तंत्रिका तंत्र के संरचनात्मक अंतर के बारे में जानते हैं:

अनुकम्पी एवं परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र में संरचनात्मक अन्तर (Structural Differences in Sympathetic and Parasympathetic Nervous Systems)

अनुकम्पी तन्त्र (Sympathetic System) परानुकम्पी तन्त्र (Parasympathetic System) 
1. इसमें अनुकम्पी ट्रंक तथा प्रिवर्टिब्रल गैग्लिया होते हैं।इसमें अन्तस्थ गैंग्लिया होते हैं।
2. गैंग्लिया केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के समीप किन्तु विसरल कार्यकर (visceral effectors) होते हैं। गैंग्लिया विसरल कार्यकरों के निकट या भीतर होते हैं।
3. प्रत्येक प्रिगैंग्लियोनिक तन्तु अनेक पोस्टगैंग्लियोनिक न्यूरॉन से सिनैप्स करता है तथा ये अनेक विसरल कार्यकरों को जाते हैं।प्रत्येक प्रिगैंग्लियोनिक तन्तु एक ही विसरल कार्यकर (visceral effectors) को जाने वाले चार या पाँच पोस्टगैंग्लियोनिक न्यूरॉन से सिनैप्स करता है।
4. अनुकम्पी तन्त्र समस्त शरीर एवं त्वचा पर फैला रहता है।परानुकम्पी तन्त्र का वितरण केवल सिर तथा वक्ष, उदर एवं श्रोणि प्रदेश के अन्तरंगों तक सीमित होता है।

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