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भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के गुण तथा दोष|B.Ed. Sem 4

B.Ed. Sem 4 notes- भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के गुण तथा दोष|in Hindi

B.Ed. Sem 4- Unit 1 notes

B. Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के चतुर्थ सेमेस्टर के विषय समकालीन भारत एवं शिक्षा (Contemporary India and Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 

भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के गुण तथा दोष

भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के गुण तथा दोष के आधार पर इसका मूल्यांकन इस प्रकार है : 

भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) का मूल्यांकन (गुण) (Evaluation of National Education Commission):

‘भारतीय शिक्षा आयोग’ ऐसा पहला आयोग था जिसने भारतीय शिक्षा के विविध अंशों का गहन अध्ययन किया और उसके सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए थे। इसके अंतर्गत आयोग ने देश के सम्मुख शिक्षा की एक ऐसी योजना प्रस्तुत की जिसमें प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक राज्य एवं जनता को कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करना आवश्यक हो गया। ‘आयोग’ ने अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया और बताया कि सहायता अनुदान की उदार नीति का अनुसरण करने से ही शिक्षा का प्रवाह अबाध गति से होने लगेगा। इस आयोग के सुझावों के गुण निम्नलिखित थे – 
 
  1. आयोग ने भारतीय शिक्षा में ईसाई मिशनरियों को प्रमुख स्थान नहीं दिया जिसके कारण भारतीयों के साथ काफी उदारता दिखाई, क्योंकि शिक्षा की आड़ में अब वे ईसाई धर्म का प्रचार नहीं करना चाहते थे। 
  2. प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में कृषि, भौतिकशास्त्र, चिकित्सा, बहीखाता आदि को स्थान दिया गया जिससे शिक्षा व्यावहारिक तथा उपयोगी बन गई। 
  3. ‘भारतीय शिक्षा आयोग’ ने शिक्षा की पुस्तकीयता को समाप्त किया और व्यावसायिक विषयों का समावेश किया जिससे छात्रों को आत्मनिर्भर बनने में काफी सहायता मिली। 
  4. ‘आयोग’ ने स्त्री-शिक्षा, मुस्लिम शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, हरिजनों, पिछड़ी जातियों और आदिवासियों की शिक्षा के सम्बन्ध में सिफारिशें कीं। इससे इनके विकास में बड़ी मदद मिली। 
  5. आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को दो भागों में विभाजित किया और उस पेचीदगी को दूर करने का प्रयास किया जिसे समझने हेतु स्वतन्त्र भारत में बहुउद्देशीय विद्यालयों की योजना को क्रियान्वित किया गया। 
 
आयोग के सुझावों के फलस्वरूप भारतीयों ने शिक्षा के क्षेत्र में आकरके शिक्षा का भार अपने कन्धे पर लेना प्रारम्भ किया। आयोग के सुझावों की सराहना करते हुए नूरुल्ला और नायक ने लिखा है ‘आयोग’ की जाँच के फलस्वरूप भारत में महान शैक्षिक जागृति हुई और उसके मुख्य निर्णयों की 1902 ई. तक भारत की शिक्षा नीति पर प्रभुत्व रहा। 

भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के दोष (Demerits of National Education Commission) :

‘भारतीय शिक्षा आयोग’ की सिफारिशों में कई विद्वानों ने दोषों को भी देखा है। इसके दोष निम्नलिखित हैं- 
 
  1. भारतीय शिक्षा आयोग ने अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया जिससे भारतीय अपनी भाषा के अध्ययन से वंचित हो गए।
  2. सरकार को शिक्षा के उत्तरदायित्व से मुक्त होने की जो सिफारिश की गयी वह भारतीय शिक्षा के विकास में बाधक होने की बात थी।
  3. व्यक्तिगत विद्यालयों को सरकारी विद्यालयों की अपेक्षा कम शुल्क लेने की सिफारिश की गयी थी जिससे शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिद्वन्द्विता का जन्म हुआ।
  4. ‘भारतीय शिक्षा आयोग’ ने प्राथमिक शिक्षा का उत्तरदायित्व स्थानीय संस्थाओं पर डालने की सिफारिश की थी। यह सिफारिश अनुपयुक्त थी क्योंकि उनके साधन सीमित और कार्यकुशलता निम्न थी। इस कारण जन-साधारण की शिक्षा की प्रगति नहीं हुई।
  5. ‘भारतीय शिक्षा आयोग’ ने प्राथमिक विद्यालयों को आर्थिक सहायता देने के लिए परीक्षाफल बनाने की सिफारिश प्रस्तुत की थी जिससे प्राथमिक शिक्षा का बड़ा अहित हुआ क्योंकि ऐसा करने से शिक्षा में परीक्षा ही मुख्य हो गयी।
  6. मुसलमानों के लिए प्राथमिक शिक्षा की अलग से व्यवस्था करने की सिफारिश की, जिससे सम्प्रदायवाद को उत्साह मिला।
  7. आयोग ने माध्यमिक शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को रखा और मिडिल विद्यालयों के लिए शिक्षा का कोई माध्यम निश्चित नहीं किया जिससे मातृभाषाओं की उपेक्षा हुई।
  8. व्यावसायिक शिक्षा के सुझाव सिर्फ नाम मात्र के थे।
  9. प्रशिक्षण विद्यालयों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
  10. आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा के पाठ्यक्रम पर गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया।
  11. आयोग की सिफारिशों में कहीं-कहीं विरोधाभास भी देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के लिए परीक्षाफल के अनुसार वेतन-प्रणाली को बुरा बताया गया लेकिन दूसरी ओर इसी प्रणाली को देशी शिक्षा के लिए स्वीकृत कर दिया गया। 
भारतीय शिक्षा आयोग ने जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उनमें कोई नवीनता नहीं थी इसी से खिन्न होकर ए. एन. बसु ने लिखा है- ‘आयोग’ ने लगभग उन्हीं सिद्धान्तों की पुनरावृत्ति की, जिनको वर्षों पूर्व वुड के आदेश-पत्र में स्वीकार किया गया था। उसने उन सिद्धान्तों में कुछ को केवल विस्तृत कर दिया और कुछ पर यत्र-तत्र थोड़ा सा बल दे दिया।’ 
 
भारतीय शिक्षा आयोग ने 1854 ई. के ‘आदेश-पत्र’ की सिफारिशों की पुनरावृत्ति के फलस्वरूप उसने उन सिफारिशों में जान डाल दी जिनमें दुर्बलता एवं शिथिलता थी। उन सिफारिशों के द्वारा भारतीय शिक्षा आयोग ने एक ऐसी शिक्षा नीति का प्रतिपादन किया जिसे सरकार ने खुशी से स्वीकार किया। यही कारण है कि भारत में आए अगले 20 वर्षों में आयोग के सुझावों ने भारतीय शिक्षा के प्रत्येक अंग को प्रभावित किया। यही कारण है कि भारतीय शिक्षा के इतिहास में ‘भारतीय शिक्षा आयोग’ को विशेष स्थान दिया गया है। टी. एन. सिक्वेरा का मत है कि, “अपने समस्त सुझावों के लिए, ‘आयोग’ हार्दिक सराहना का पात्र है। यदि आज भारतीय शिक्षा प्रणाली के विषय में इतने अधिक असंतोष का अनुभव किया जा रहा है, तो इसका कारण यह कि 1882 ई. में निर्धारित की जाने वाली शिक्षा नीति के मुख्य अभिप्राय का अनुसरण नहीं किया गया है।”
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