मेटाजोआ प्राणियों के शरीर में एक ही प्रकार का कार्य करने वाली समस्त कोशिकाओं में आकारिक समानता या संरचनात्मक एकता पायी जाती है। एक-सा कार्य करने वाली कोशिकाएँ शरीर में अनियमित रूप से बिखरी नहीं रहतीं, बल्कि ये छोटे-छोटे क्रियात्मक समूहों में विन्यसित रहती हैं। इन्हें ऊतक (tissue) कहते हैं। अतः ऊतक ऐसी कोशिकाओं का समूह होता है जो उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य में समान होती हैं और अजीवित अन्तराकोशिकीय पदार्थ द्वारा परस्पर जुड़ी होती हैं। ऊतक (tissue) शब्द का प्रयोग Bichat (1771-1802) ने किया था। नीचे हम इससे संबंधित कुछ प्रश्नों के उत्तर जानने की कोशिश करेंगे।
Ans. ऐसिटाइलकोलीन (acetylcholine) एक प्रकार का रासायनिक संचारी (chemical transmitter) होता है। इसे न्यूरोह्यूमर (neurohumour) भी कहते हैं। यह ऐक्सॉन के सिरों पर स्थित सिनैप्टिक घुण्डियों के नीचे स्थित सिनैप्टिक थैलियों में भरा रहता है। यह आवेग को synapsis के पार ले जाता है।
इसकी अनुपस्थिति में आवेग (impulse) का एक तन्त्रिका कोशा से अन्य तन्त्रिका कोशा में संचारण रुक जाएगा।
Ans. हृदय में जन्तु की इच्छा के बिना, बिना थके, बिना रुके एक निश्चित दर (मनुष्य में 72 बार प्रति मिनट) से एक लय में जीवन भर संकुचन एवं शिथिलन होता रहता है। इस प्रक्रिया को हृदय की धड़कन कहते हैं। हृदय की प्रत्येक धड़कन में आकुंचन (contraction) की प्रेरणा परकिंजे तन्तुओं द्वारा अलिंदी एवं निलयी पेशियों में संचरित होती है। इससे स्पष्ट है कि हृद् पेशियों को आकुंचन के लिए तन्त्रिकीय आवेगों की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात् ये पेशियाँ तन्त्रिकाजनक न होकर पेशीजनक होती है। फिर भी हृदय में स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के तन्तु जाते हैं जो केवल हृदय की धड़कन की दर को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि स्वायत्त तन्त्रिका तन्तुओं को काटने के बाद भी हृदय धड़कता रहता है।
Ans. रेखित पेशी को ऐच्छिक पेशी भी कहते हैं। रेखित पेशियों में गति, तन्त्रिकाओं के उत्तेजन के फलस्वरूप होती है। पेशी संकुचन में सार्कोमीयर्स, मायोफाइब्रिल्स की इकाई के रूप में कार्य करता है। इस कार्य को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है जो पेशियों में माइटोकॉण्ड्यिा में ATP के रूप में संचित रहती है।
पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा पेशी तन्तुओं को ATP के रूप में मिलती है। अधिक व्यायाम या परिश्रम के कारण रेखित पेशी से ग्लूकोज की खपत तेजी से होती है जिससे ग्लूकोज समाप्त हो जाता है एवं शरीर को श्वसन द्वारा पूरी ऑक्सीजन प्राप्त नहीं हो पाती है। अधिक श्रम करने के पश्चात् पेशियों की संकुचन क्षमता बहुत कम हो जाती है जिससे वह अधिक कार्य नहीं कर पाता और पेशियों में लैक्टिक अम्ल जमा हो जाता है जो ग्लूकोज में नहीं बदलता। इससे थकावट महसूस होती है एवं रेखित पेशियों को आकुंचन के लिए ऊर्जा नहीं मिलती तथा आकुंचन रुक जाता है।
Ans. एक तन्त्रिका कोशिका का डेंड्राइट दूसरी तन्त्रिका कोशिका के ऐक्सॉन से विशिष्ट बन्धों द्वारा जुड़ा रहता है। इन विशिष्ट बन्धों को युग्मानुबन्धन (synapse) कहते हैं। इसी प्रकार से न्यूरॉन्स आपस में जुड़कर तन्त्रिका ऊतक तथा तन्त्रिका तन्तु मिलकर तन्त्रिका बनाते हैं। संवेदनाएँ इन्हीं न्यूरॉन्स के साइटॉन एवं ऐक्सॉन द्वारा मस्तिष्क को पहुंचायी जाती है। जब उद्दीपन युग्मानुबन्धन (synapse) पर पहुँचता है तो यह युग्मानुबन्धन को उद्दीप्त कर देता है। इससे Synapse एक विशेष प्रकार के हॉमोन ऐसिटिलकोलीन का स्राव करता है जो समीपस्थ साइटॉन या डेंड्राइट को उद्दीप्त कर देता है। इस प्रकार संवेदनाएँ नई कोशिकाओं में पहुँच कर एक कोशिका से दूसरी कोशिका में सिनैप्स को पार करते हुए मस्तिष्क या मेरु रज्जु तक एवं उसके पश्चात् शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचती हैं।
Ans. पक्ष्माभी एपिथीलियम पक्ष्मों (Cilia) की गति द्वारा श्लेष्म व अन्य पदार्थों को आगे की ओर धकेलती है; जैसे- श्वासनली, अण्डवाहिनी, मूत्रवाहिनी तथा मेंढक की मुखगुहा की म्यूकस झिल्ली। पक्ष्यों (Cilia) को निकाल देने से इन अंगों के कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जैसे- अण्डवाहिनी में अण्डे नीचे की ओर गति नहीं कर पायेंगे, मूत्रवाहिनी में से मूत्र मूत्राशय की ओर नहीं जा पायेगा। अतः पक्ष्माभी एपिथीलियम से पक्ष्म निकाल दिये जाने पर ये पदार्थ वाहिनियों में एक ही स्थान पर रुक जायेंगे और शरीर में कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है।
Ans. तन्त्रिका कोशिकाओं के ऐक्सॉन समीप वाली तन्त्रिका कोशिका के डेड्राइट्स के सम्पर्क में रहते हैं। इन स्थानों को युग्मानुबन्धन (synapse) कहते हैं। इन्हीं के द्वारा संवेदनाएँ एक तन्त्रिका कोशिका से दूसरी तन्त्रिका कोशिका में होते हुए मस्तिष्क या रीढ़ रज्जु तक पहुँचती हैं। ऐक्सॉन के अन्तिम सिरों को नष्ट करने से साइटॉन के साथ ऐक्सॉन का सम्बन्ध नष्ट हो जाएगा जिससे न तो संवेदनाएँ मस्तिष्क या मेरु रज्जु तक पहुँचती है और न ही वहाँ से कोई आदेश उस अंग तक पहुंच पाएगा। इसके फलस्वरूप शरीर में होने वाली विभिन्न क्रियाओं पर से मस्तिष्क का नियन्त्रण समाप्त हो जायेगा।
Ans. अस्थि कोशिकाओं एवं मैट्रिक्स की बनी होती है। मैट्रिक्स ओसीन नामक विशेष लचीले प्रोटीन का बना होता है किन्तु इसमें कैल्सियम एवं मैग्नीशियम के लवण (कार्बोनेट्स, फॉस्फेट्स आदि) जमा रहते हैं जिससे मैट्रिक्स कड़ा एवं कठोर हो जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें कोलेजन तन्तु भी पाये जाते हैं।
इस कठोर एवं दृढ़ हड्डी पर नमक का अम्ल डालने पर अस्थि के अकार्बनिक पदार्थ घुल जाते हैं और CO₂ बुलबुलों के रूप में बाहर निकल जाती है जिससे अस्थि डीकैल्सिफाइड हो जाती है और अस्थि का कार्बनिक ढाँचा ही शेष रह जाता है।
Ans. (a) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में रखने पर अस्थि के लवण घुल जाते हैं जिससे अस्थि कोमल व लचीली हो जाती है। इसे अस्थि का डीकैल्सीकरण कहते हैं।
(b) पोटैशियम हाइड्रोक्साइड के घोल में रखने पर अस्थि अप्रभावित रहती है। केवल इस पर लगी पेशियाँ साफ हो जाती है।