Ans. ग्लूकोज का ऑक्सीकरण दो पदों में पूर्ण होता है- ग्लाइकोलाइसिस तथा साइट्रिक एसिड चक्र। ग्लाइकोलाइसिस के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप पाइरुविक अम्ल बनता है जिससे ATP के दो अणुओं का निर्माण होता है। पाइरुविक अम्ल का ऑक्सीकरण माइटोकॉन्ड्रिया में क्रिस्टी में होता है। इस समस्त क्रिया को कैब्स चक्र कहते हैं। इस चक्र के पूर्ण होने में ATP के 36 अणु उत्पन्न होते हैं। अतः क्रिस्टी को नष्ट करने पर पाइरुविक अम्ल का ऑक्सीकरण नहीं होगा जिससे कोशिका को विभिन्न क्रियाओं के लिए पर्याप्त ऊर्जा उपलब्ध नहीं होगी। ऊर्जा न मिलने के कारण कोशिका की उपापचय क्रियाएँ समुचित रूप से नहीं होंगी जिससे कुछ समय बाद वह कोशिका नष्ट हो जायेगी।
Ans. मस्तिष्क में उच्छ्वसन केन्द्र को नष्ट करने पर जन्तु में निःश्वसन नहीं होगा जिससे फेफड़ों में भरी वायु डायाफ्राम की रेडियल पेशियों के शिथिलन एवं इन्टरकॉस्टल पेशियों का आकुंचन रुक जाने के कारण बाहर नहीं निकल पायेगी। जिसके फलस्वरूप जन्तु की कुछ समय बाद मृत्यु हो जायेगी।
Ans. व्यक्ति को कसरत करते समय अधिक ऊर्जा चाहिए होती है। यह ऊर्जा उन्हें ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से मिलती है। ग्लूकोज के अणुओं की संख्या अधिक होती हैं जिसके कारण ऑक्सीकरण की प्रक्रिया में उन्हें अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसके फलस्वरूप श्वास गहरी व तीव्र हो जाती है।
Ans. हम जैसे-जैसे ऊँचाई पर जाते है वायुमण्डल का दाब कम होता जाता है जिससे वायु में ऑक्सीजन का आंशिक दाब भी कम हो जाता है। ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम होने पर हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन को ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है। जिसके फलस्वरूप ऊतकों में CO₂ की मात्रा बढ़ जाती है। CO₂ की इस बढ़ी हुई मात्रा को निकालने के लिए श्वासोच्छ्वास अधिक तेजी से होता है।
Ans. व्यक्ति सामान्यतः नाक से ही साँस लेता है। नाक की गुहा गर्म एवं नम होती है। इसमें अंदर कई छोटे छोटे बाल होते हैं जिन्हें रोम कहा जाता है। यह रोम वायु से धूल तथा सूक्ष्मजीवों को छानकर वायु को आगे निःश्वसन हेतु बढ़ने देती है। नाक के अन्दर होने वाला स्राव कीटनाशक होता है, जो जीवाणुओं को नष्ट कर देता है।
यदि निःश्वसन (expiration) मुख द्वारा होता है तो वायु सूखी, ठण्डी तथा धूल से भरी होती है जो गले, श्वसनिका तथा फेफड़ों को हानि पहुँचाती है। इसके परिणामस्वरूप मुँह से साँस लेने वाले व्यक्ति को गले में घाव, ट्रॉन्सिल बढ़ जाना, दाँतों का सड़ जाना तथा ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती है। कभी-कभी डिफ्थीरिया, स्कारलैट ज्वर और यूस्टेशियन ट्यूब में सूजन के कारण बहरापन भी हो सकता है।
Ans. कोयले की जलती हुई अँगीठी से कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) गैस निकलती है। हीमोग्लोबिन से कार्बन मोनोऑक्साइड के मिलने की क्षमता ऑक्सीजन की क्षमता से लगभग 250 गुना अधिक होती है। CO हीमोग्लोबिन से संयुक्त होकर एक स्थिर यौगिक बना लेती है जिससे हीमोग्लोबिन का यह भाग श्वसन के लिए बेकार हो जाता है। और मनुष्य की दम घुटने के कारण मृत्यु हो सकती है।
Ans. फेफड़े की पतली दीवार में रुधिर केशिकाएँ स्थित होती हैं जिसके द्वारा गैसीय विनिमय होता है और ऑक्सीजन रुधिर में पहुँचती है तथा CO2 निकलती है। अतः फेफड़ों की दिवार मोटी होने से इसमें श्वसन सुचारु रूप से नहीं हो पाएगा।
Ans. मैराथन के समय प्रतियोगी के पैरों में अनॉक्सीश्वसन की प्रक्रिया होती है, क्योंकि दौड़ते समय पैरों की पेशियों को आवश्यकता के अनुसार ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पाती है। इस कारण पैरों की पेशियों में लैक्टिक अम्ल का संचय हो जाता है। जिससे पैरों में दर्द होने लगता है किन्तु कुछ समय बाद यह अम्ल शरीर के अन्य ऊतकों में धीरे-धीरे विसरित हो जाता है जिससे दर्द कम हो जाता है।
Ans. श्वसन एक नियन्त्रित प्रक्रिया है। यह माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित विभिन्न एन्जाइमों के द्वारा पूरी होता है। इस प्रक्रिया में रासायनिक बन्ध धीरे-धीरे टूटते हैं इसलिए इसमें से निकालने वाली ऊर्जा अचानक व अधिक मात्रा में नहीं मिलती है। इसमें से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का कुछ भाग ATP में संचित हो जाता है तथा इसका कुछ भाग ऊष्मा के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। यह ऊर्जा लौ या ज्वाला के रूप में बाहर नहीं निकलती, अतः शरीर का तापक्रम बढ़ नहीं पाता है।
इसके विपरीत जब आग जलती है तो इस क्रिया में रासायनिक बन्ध लगातार टूटते हैं जिससे एकदम से अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा हमें लौ या ज्वाला के रूप में बाहर निकलती हुई दिखाई देती है। इस प्रकार दहन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कोई एन्जाइम भाग नहीं लेता और न ही ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है।