व्यक्तित्व (Personality) की विशेषताएँ
व्यक्तित्व (Personality) शब्द में अनेक विशेषताएँ निहित होती है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. आत्म- चेतना
व्यक्तित्व (Personality) की पहली व मुख्य विशेषता है- आत्म – चेतना (self consciousness)। इसी विशेषता के कारण सभी जीवधारियों में मनुष्य को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इस गुण के कारण ही उसमें सफलता, असफलता, अहं भाव, आत्मबोध आदि होता है।
2. सामाजिकता
सामाजिक पर्यावरण और उत्तेजना के आधार पर ही वह क्रिया-प्रतिक्रिया करता है, सामाजिक सम्पर्क में व्यक्तित्व का विकास होता है तथा सामाजिक व्यवहार को देखकर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन होता है।
3. सामंजस्य
व्यक्ति अपने समाज व पर्यावरण से अनुकूलन स्थापित करने का प्रयास करता है। व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए पर्यावरण से समन्वय होना आवश्यक है। सामंजस्य के कारण ही उसके व्यवहार में परिवर्तन होता है।
4. निर्देशित लक्ष्य - प्राप्ति
मानव के व्यवहार का सदैव एक निश्चित उद्देश्य होता है। वह उस उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है। उसके व्यवहार व लक्ष्यों से अवगत होकर हम उसके व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।
5. दृढ़ इच्छा-शक्ति
दृढ इच्छा शक्ति, व्याक्ति को जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष करके अपने व्यक्तित्व को उत्कृष्ठ बनाने की क्षमता प्रदान कर देती है।
6. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य
मनुष्य मनोशारीरिक प्राणी है। अतः उसके अच्छे व्यक्तित्व के लिए अच्छे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का होना एक आवश्यक शर्त है।
7. एकता व एकीकरण
8. विकास की निरन्तरता
व्यक्तित्व के विकास में कभी भी स्थिरिता नहीं आती है। जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्यों, विचारों, अनुभवों, स्थितियों आदि में परिवर्तन होता है वैसे-वैसे उसके व्यक्तित्व में स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है।
व्यक्तित्व (Personality) को प्रभावित करने वाले कारक
हम व्यक्तित्व (Personality) को प्रभावित करने वाले कारकों को दो भागों में बाँट सकते हैं-
- जैविक या आनुवंशिक कारक
- पर्यावरणीय कारक
जैविक या आनुवंशिक कारक
वंशानुक्रम से तात्पर्य मनुष्य की जैविक संरचना और जैविक क्रियाओं से होता है। इसके अंतर्गत निम्न कारकों सम्मिलित किफ गया है-
ⅰ) शरीर
प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व (Personality) के विकास में उसकी शारीरिक संरचना या शरीर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शारीरिक तत्व के अंतर्गत रूप-रंग, शारीरिक गठन, भार, कद वाणी या स्वर आते हैं। साधारण बोलचाल में किसी के सुन्दर आकर्षक शारीरिक संरचना रूप-रंग और स्वस्थ शरीर को देखकर उसके व्यक्तित्व को अच्छा मान लिया जाता है।
ii) अन्तः स्रावी ग्रंथियाँ
हमारे शरीर में कुछ अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ हैं इनमें में हार्मोन्स का स्त्राव होता है। जो रक्त में मिलकर शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचता है जो व्यक्ति की आकृति, गठन स्वस्थ्य, संवेगशीलता, बुद्धि और व्यक्तित्व के अन्य पहलूओं विकास में सहायक होती है। कुछ अंत: स्रावी ग्रंथिया निम्न हैं-
- थायराइड ग्रंथि– इस ग्रंथि से स्रावित हार्मोन व्यक्ति के या बालक के शारीरिक व मानसिक विकास में सहायक होता है।
- पैराथायराइड ग्रांथि– इस ग्रंथि से स्रावित हार्मोन से व्यक्ति के दाँत व हड्डियां मजबूत होती है तथा मस्तिष्क भी सुचारु रुप से कार्य करता है।
- एड्रीनल ग्रंथि– इससे स्रावित हार्मोन द्वारा व्यक्ति का शारीरिक व मानसिक विकास होता है।
- पिट्यूटरी ग्रंथि– यह व्यक्ति के शारीरिक विकास को प्रभावित करता है तथा यह आँतों की क्रियाओं को भी नियंत्रित करता है।
- गोनाड ग्रंथि– इस ग्रंथि से स्रावित हार्मोन लड़के व लड़की में यौन अंगों के वृद्धि व विकास में सहायता करते हैं।
iii) तंत्रिका तंत्र
इसका सर्वप्रथम अंग मस्तिष्क होता है। किसी उद्दीपन या परिस्थिति विशेष का ज्ञान तंत्रिकाओं के सहारे मस्तिष्क को होता है, फिर मस्तिष्क तंत्रिकाओं द्वारा आदेश देता है जिससे व्यक्ति उस परिस्थिति या उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया (response) करता है। इस प्रकार व्यक्ति तंत्रिका तंत्र के द्वारा ही उसकी मदद से किसी परिस्थिती को समझकर व्यवहार करता है। उसका यह व्यवहार ही उसका व्यक्तित्व दर्शाता है।
iv) बुद्धि
व्यक्तित्व (Personality) को निर्धारित करने वाला एक प्रमुत्व तत्व बुद्धि है। तीव्र बुद्धि, सामान्य बुद्धि व मंद बुद्धि व्यक्ति के व्यक्तित्व में भिन्नता दिखाई देती है।
पर्यावरणीय कारक
व्यक्तित्व (Personality) के पर्यावरणीय निर्धारकों या कारकों में मुख्यतः निम्न कारक आते हैं-
ⅰ) भौतिक पर्यावरण
मनुष्य जिस भौतिक पर्यावरण में जन्म लेता है व रहता है, उसका प्रभाव उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास पर अवश्य पड़ता है। जैसे कि ठण्डे जलवायु वाले देशों में व्यक्ति प्रायः बलिष्ठ, गोरे, उत्साही व परिश्रमी होते हैं तथा गर्म जलवायु वाले देशों के व्यक्ति प्रायः दुर्बल, निरुत्साही और आलसी होते हैं।
ii) सामाजिक पर्यावरण
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह जन्म के कुछ दिन बाद ही दूसरों से सम्बंध स्थापित करने लगता है। वह अपने जीवन में अनेक समाजों का सदस्य बनता है और उनके व्यवहार प्रतिमानो को सीखता है, मूल्य तथा मान्यताएं सीखता है और उसके अनुकूल व्यवहार करता है और इस प्रकार उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। परिवार का पर्यावरण उसके व्यक्तित्व निर्माण में आधार भूमिका निभाता है। मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से शिशु काल आदतों एवं व्यक्तित्व निर्माण का काल होता है और इस निर्माण में घर के पर्यावरण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। परिवार से निकलकर बालक पास-पड़ोस में प्रवेश करता है। जहाँ वो अन्य बच्चों व व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है। पास-पड़ौस का सामाजिक पर्यावरण भी उसके व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव डालता है। बच्चे विद्यालय पर्यावरण को आदर्श पर्यावरण मानते हैं। तथा विद्यालय के सदस्यों (प्रधानचार्य, शिक्षक एवं अन्य कर्मचारियों) का बहुत प्रभाव पड़ता है इनके व्यक्तित्व (Personality) पर।
iii) सांस्कृतिक पर्यावरण
किसी समाज में उसकी संस्कृति से तात्पर्य उस समाज के व्यक्तियों के रहन-सहन, खान-पान की विधियों, व्यवहार प्रतिमानो, आचार- विचारों, रीति-रिवाजों, कला- कौशल, संगीत-नृत्य, भाषा-साहित्य, धर्म-दर्शन, आदर्श – विश्वास और मूल्यों के उस विशिष्ट रूप से होता है जिसमें उसकी आस्था होती है और जो उसकी पहचान होती है। सभी समाज अपनी इस संस्कृति का आने वाली पीढ़ी में हस्तांतरण करते हैं, इसलिए मनुष्य के व्यक्तित्व विकास में सर्वाधिक भूमिका उसकी संस्कृति की होती है।
iv) शिक्षा
व्यक्तित्व (Personality) के पर्यावरणीय कारकों में शिक्षा का सबसे अधिक महत्व है। शिक्षा वह साधन है जो परिवार, पास-पड़ौस एवं विभिन्न समाजों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के प्रभाव से निर्मित बच्चों के व्यक्तित्व में काँटछाँट करती है और उसे उचित दिशा प्रदान करती है।
v) आर्थिक पर्यावरण
व्यक्तित्व (Personality) के शीलगुणों के विकास में परिवार की सामाजिक स्थिति का ही नहीं बल्कि अर्थिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। आर्थिक स्थिति ठीक न होने से व्यक्तित्व के विकास तथा शीलगुणों के निर्माण पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व (Personality) के निर्धारण में इन दोनों कारकों का संयुक्त प्रभाव पड़ता है। व्यक्तित्व जैसा भी हो, वह इन दोनों कारकों के अंतःक्रिया का वह परिणाम होता है। अकेले कोई एक कारक उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है।