छात्रों की अध्ययन की आदतों को निम्नलिखित प्रकार से विकसित किया जा सकता हैं-
योजनाबद्ध तरीके की आवश्यकता
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी सभी क्रियाओं को योजनाबद्ध तरीके से करें। सीखने वाला चाहे किसी भी उम्र का हो, यदि वह अपने समय की सूची बनाता है, जो अपने दैनिक कार्यों (अध्ययन भी) को योजना बनाकर करता है, तथा इसे अपनी आदत में शामिल कर लेता है तो यह उसे सिर्फ विद्यालय के दिनों में ही नहीं बल्कि उसके आगे भविष्य में भी सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है।
अध्ययन की योजना बनाने वाला छात्र अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कार्यों को भी स्थान देता है। अध्ययन के लिए योजना बनाने का विचार कुछ छात्रों को भयभीत कर देता है क्योंकि वे न तो योजना बनाते हैं और न ही उसके अनुसार कार्य करते हैं। तथापि, यदि छात्र प्रत्येक दिन के कार्य तथा उसे करने में लगने वाले समय के लिए योजना बनाता है तो परिणामस्वरूप ज्यादा दक्षता तथा ज्यादा आंनद प्राप्त होता है।
स्पष्ट व निश्चित गृहकार्य दिया जाए
छात्र चाहे जिस उम्र का भी हो उसको स्वतंत्र रूप से दिया जाने वाला कार्य स्पष्ट व निश्चित होना चाहिए। यदि छात्र गृहकार्य के विषय में यह कहता है – “शिक्षक ने क्या कार्य दिया है?” या “मैं इस कार्य को करने के लिए इससे संबंधित सामग्री को कहाँ से पा सकता हूँ?” तो इसका केवल एक ही अर्थ है कि शिक्षक द्वारा दिया जाने वाला कार्य स्पष्ट व निश्चित नहीं है। अत:
यह विशिष्ट विचारों, तथ्यों, जिनके विषय में ज्ञान प्राप्त करना है पर प्रत्यक्ष रुप से ध्यान देने में शिक्षक की सहायता करता है।
छात्रों का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा हो
छात्रों की अध्ययन की आदतों पर उनकी शारीरिक स्वास्थ्य का बहुत प्रभाव पड़ता है। यदि छात्र का स्वास्थ्य सहीं नहीं होगा तो वह अध्ययन में एकाग्र नहीं हो पाएगा तथा उनमें उत्तम अध्ययन संबंधी आदतों का विकास नहीं हो पाएगा।
अतः इसके लिए यह आवश्यक है कि छात्रों में उत्तम अध्ययन आदतों के विकास के लिए, छात्रों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे।
यह विद्यालय तथा काउन्सलर का उत्तरदायित्व है कि वे छात्रों की स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं के समाधान में उनकी सहायता करें। छात्रों की मार्गदर्शन द्वारा सहायता करते हुए उनमें उत्तम अध्ययन संबंधी आदतों का विकास किया जा सकता है।
छात्रों में पढ़ने की योग्यता बढ़े
पुस्तक के पाठ को सिर्फ उसमें प्रयोग होने वाले शब्दों से परिचित होने के लिए ही नहीं, अपितु उन शब्दों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए। यदि वास्तव में छात्र उन विचारो का ज्ञान पाना चाहता है तो उसे प्रत्येक शब्द के अर्थ को अच्छे से समझना चाहिए। छात्रों की पढ़ने की आदतें भिन्न भिन्न होती हैं। कुछ छात्रों की पढ़ने की गति में तीव्रता होती है और कुछ छात्रों की पढ़ने की गति मंद होती है। मंद गति से पढ़ने वाला छात्र प्रत्येक शब्द एवं शब्द समूह को ध्यान से पढ़ेगा।
छात्रों में प्रश्नों के उत्तर देने की योग्यता
पाठ्य-पुस्तक के प्रत्येक अध्याय के अंत में कुछ प्रश्न होते हैं। इसके दो उद्देश्य होते हैं-
- छात्रों को अध्याय की विशेषता पर अधिक विचार करने में सहायता देना।
- छात्रों को प्रत्येक विषय-वस्तु से संबंधित सामग्री की स्वयं खोज करने के लिए प्रोत्साहित करना।
अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए छात्रों को स्वयं कुछ क्रमबद्ध रूप से कुछ प्रश्नों की रचना करके उसके उत्तर खोज कर वे अपने को उन महत्वपूर्ण विचारों को पुनः स्मरण करने के लिए तैयार करते हैं, जिनकी भविष्य में सहायता होती है।
छात्रों में विषय को संक्षेप में लिखने की योग्यता हो
छात्र जिस विषय का अध्ययन करता है, उसको सुनियोजित, संगठित करके ही संक्षेप में लिखा जा सकता है। इस कार्य में सफलता हेतु विभिन्न प्रकार से छात्र को विशेष प्रयास करना पड़ता है।
अध्ययन में निर्देशन मिले
शिक्षक का महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि छात्रों को अध्ययन सम्भबंधी निर्देशन दें। जिससे छात्रों में उत्तम अध्ययन आदतों का विकास हो सके। शिक्षक छात्रों को अच्छे से तथा प्रभावशाली विधि का प्रयोग करते हुए व्याख्या करे या समझाए जिससे कि छात्र अपनी अध्ययन आदतों को अधिक प्रभावशाली बना सकें।
अध्ययन के पृथक कार्यक्रम
छात्रों के विभिन्न समूह विभिन्न कक्षाओं में अध्ययन करते हैं। इन समूहों में छात्रों की रुचि किसी एक विषय के लिए समान नहीं होती है। अतः उस विषय के लिए अध्ययन संबंधी आदतें विभिन्न समूहों में अलग- अलग होगी। इस प्रकार से यह आवश्यक हो गया है कि छात्रों की रुचियों का ध्यान रखा जाए तथा छात्रों की रुचियों के अनुसार विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाना चाहिए। यह छात्रों में उत्तम अध्ययन आदतों के विकास में सहायता करेगा ।
अध्ययन के समय का विभाजन करे
किसी विषय का अध्ययन करने के लिए दो विधियों का प्रयोग छात्रों द्वारा किया जाता है-
- बिना विश्राम किए निरंतर अध्ययन करना।
- निरन्तर अध्ययन करने के बजाय बीच-बीच में विश्राम करना।
जब छात्र बिना विश्राम किए निरन्तर अध्ययन करते हैं तो वह इतना प्रभावपूर्ण नहीं होता है क्योंकि लगातार अध्ययन से थकान होने लगती तथा स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है। अतः छात्र अपने अध्ययन से तभी लाभान्वित हो सकते हैं, जब मध्य में विश्राम करते हुए अध्ययन करे न कि निरन्तर अध्ययन करके।
अध्ययन की पूर्ण एवं खण्ड विधियों का प्रयोग
किसी पाठ की इकाई का ज्ञान किस प्रकार छात्रों को दिया जाए इसका निर्धारण अध्ययन की पूर्ण व खण्ड विधियों का प्रयोग करके किया जाना चाहिए। छात्र में अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए उसे इन दोनो विधियों से परिचित कराया जाए यह परम आवश्यक है कि किस विषय को कैसे व किस विधि से, भली प्रकार स्मरण किया जाए और रखा जा सकता है।
उत्तम छात्र की अध्ययन सम्बंधी आदतें कैसी होती हैं
कई छात्रा या व्यक्ति इतने सक्षम होते हैं कि वे बिना किसी विशिष्ट संस्थागत ट्रेनिंग किए ही प्रभावी अध्ययन संबंधी आदतों का विकास कर लेते हैं। हालांकि इन संतोषजनक आदतों का विकास कुछ अध्ययन की विधियों के प्रयोग करके हुआ जब तक कि संतोषजनक अध्ययन कार्यप्रणाली की खोज नहीं हुई थी। इस प्रकार कुछ अध्ययन संबंधी आदतों को बताया गया है-
- किसी विशिष्ट पाठ के लिए अध्ययन हेतु इनके पास पर्याप्त समय होता है।
- ये प्रत्येक पाठ का स्वयं अध्ययन करते है।
- ये व्याख्यान पर नोट्स बनाते हैं। अर्थात शिक्षण द्वारा पाठ के विषय में बतायी बातों को संक्षेप में लिखना।
- ये किसी भी प्रकार के बाहय या आंतरिक बाधाओं पर ध्यान नहीं देते हैं।
- अध्ययन के लिए उपयुक्त वातावरण की खोज करना।
- पाठ को विस्तार से पढ़ने से पूर्व वे पाठ को अच्छे से पढ़ते हैं।
- ये व्यैक्तिक उदाहरणों का अभ्यास करते है जिससे सामान्य नियम व सिद्धान्त का प्रतिपादन कर सकें।
- कार्य के शुरु होने से पहले ही इनकी उस कार्य की स्पृष्ट धारणा होती है।
- किसी नए काम को करने से पहले पिछले किए गए कार्य को पुनः देखते है।
- पाठ को पढ़ने के बाद ये चुपचाप जल्दी से व्याख्यान करते हैं।
अध्ययन की आदतों को विकसित करने के मनोवैज्ञानिक कारक
अध्ययन संबंधी आदतों के विकास के लिए मनोवैज्ञानिक कारकों पर आधारित निम्नलिखित सुझाव है
- सीखने वाले व्यक्ति के पास अध्ययन के लिए स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिए।
- अध्ययन के लिए विस्तृत उपयुक्त वातावरण की खोज करना।
- छात्र या व्यक्ति के पास अध्ययन हेतु पर्याप्त समय तथा समय-सारणी होनी चाहिए।
- छात्र को दीर्घकाल तक अध्ययन नहीं करना चाहिए।
- उन्हें बीच बीच में विश्राम भी करना चाहिए।
- एक विषय पर विभिन्न लेखकों के विचारों की खोज।
- अध्ययन संबंधी आदतों का सूक्ष्मता से परीक्षण करना।
- पाठ का अध्ययन करने के पश्चात् पुनः स्मरण करना।
- पाठ्य विषय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों की रचना करना व उनके उत्तर जानने की चेष्टा करना।
- चार्ट, आकृतियों, ग्राफों का सतर्कता से अध्ययन करना।
- शब्द कोश का उचित ढंग से प्रयोग करने का तरीका सीखना।
- जहाँ तक संभव हो, वहाँ अध्ययन की पूर्ण विधियों का प्रयोग करना।
- अध्ययन संबंधी आदतों का परीक्षण करना तथा अनुचित आदतों को उचित आदत का रूप देना।
इन मनोवैज्ञानिक कारकों के संबंध में क्रो व क्रो का कथन है-
“अध्ययन की प्रभावशाली आदतों का विकास करने के साधनों के रुप में मनोवैज्ञानिक कारकों का व्यवहारिक महत्व है।”