B.Ed. Sem 3-सृजनशील बालकों की पहचान कैसे करें (How to identify creative children)

B.Ed. Sem 3- Unit 3 notes

B.Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के तृतीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation in Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 

सृजनशील बालकों की पहचान कैसे करें (How to identify creative children)

सृजनशील बालकों की पहचान अथवा विशेषताएँ (Characteristics or Symptoms of Creative Children)

बालकों की सृजनशील योग्यता की पहचान करने के लिए शिक्षक कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल कर सकते है। जिनमें से सामान्यतः तीन विधियाँ इस प्रकार हैं- 
 
(अ) लक्षणों के आधार पर
(ब) कक्षा अध्यापक की सम्मति के आधार पर
(स) परीक्षणों के आधार पर। 
 
उपर्युक्त विधियों में अन्तिम विधि सबसे विश्वसनीय और वैध है। इन परीक्षणों के अभाव में बालकों की सृजनात्मकता की पहचान अन्य माध्यमों से की जाती है। यहाँ सृजनशील बालकों की पहचान करने के लिए कुछ विधियों का उल्लेख किया जा रहा है- 

(अ) लक्षणों के आधार पर

  1. सृजनशील बालकों में मौलिकता और नवीनता का गुण पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। 
  2. सृजनशील बालकों में स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता होती है। वह दूसरों के सुझाव पर कोई निर्णय नहीं लेना चाहता वह स्वतन्त्र रूप से कार्य करना पसन्द करता है। 
  3. ऐसे बालकों में जिज्ञासा और उत्सुकता बहुत अधिक होती है। वे किसी भी रहस्य, घटना अथवा प्रश्न का उत्तर स्पष्ट रूप से जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। 
  4. ऐसे बालक दूरदर्शी और अच्छे भविष्यदृष्टा होते हैं। वर्तमान परिस्थितियों को देखकर वे भविष्य का अनुमान लगाने में समर्थ होते हैं। 
  5. सृजनशील बालक स्वभाव से विद्रोही होता है। वह परम्परागत रूढ़िवादी रास्ते से हटकर अपने बनाये हुए मार्ग पर चलना अधिक पसन्द करता है। अपने इस स्वभाव के कारण कभी-कभी उनके सामने समायोजन की समस्या आ जाती है। 
  6. ऐसे बालक जटिल व्यक्तित्व वाले होते हैं। जीवन की विविध जटिलताओं, समस्याओं और अस्पष्ट विचारों का हल खोजना उन्हें अधिक पसन्द होता है। ऐसे बालक को समझ पाना शिक्षक के लिए कठिन होता है। 
  7. सृजनशील बालक हास-परिहास, प्रेम तथा मनोविनोदी होते हैं। उनमें विनोदप्रियता सामान्य बालकों से अधिक होती हैं। 
  8. वे किसी कार्य को एकाग्रचित्त होकर करते हैं। असफलता मिलने पर वे घबड़ाते नहीं और अपने कार्य में बराबर ध्यानमग्न रहते है। 
  9. सृजनशील बालक बड़े ही भावुक और संवेदनशील होते हैं। इसलिए वे प्रत्येक कार्य को गम्भीरतापूर्वक करते हैं। 
  10. वे सामान्य बातों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। ऐसे अस्पष्ट विचार जिन पर सामान्य बालक ध्यान नहीं देते सृजनशील बालक उनके प्रति भी सजग रहते हैं। 
  11. सृजनशील बालकों में साहस की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसी कारण वे प्रत्येक कार्य में अगुवायी करते हैं। साहस के बल पर वे उन कार्यों में भी हाथ डाल देते हैं जिनसे सामान्य बालक डरते हैं। ऐसे बालकों में निर्भीकता और आत्मविश्वास की भावना बहुत अधिक होती है जिसके बल पर वे खतरा भी मोल ले लेते हैं। 
  12. उनमें उत्तरदायित्व वहन करने की क्षमता बहुत अधिक होती है। वे जिम्मेदारी के कार्यों में पीछे नहीं हटते बड़े से बड़े कार्य का उत्तरदायित्व लेने से घबड़ाते नहीं। 
  13. इन बालकों में उच्च कल्पना-शक्ति होती है। भविष्य के विषय में नई-नई कल्पनाएँ करना इनकी आदत होती है। इस गुण के कारण ही ये महत्त्वाकांक्षी होते हैं। 
  14. प्रायः सृजनशील बालकों में बौद्धिक प्रतिभा उच्चकोटि की होती है। 
  15. ये स्वभाव से शक्की होते हैं और इसी कारण छोटी से छोटी बात की भी जाँच करते हैं। 
  16. इनका व्यवहार लचीला होता है और समय के अनुकूल अपने को परिवर्तित करने में इन्हें कोई परेशानी नहीं होती। 

(ब) कक्षा अध्यापक की सम्मति के आधार पर

सृजनात्मक बालकों की पहचान न केवल लक्षणों के आधार पर की जा सकती है बल्कि कक्षा अध्यापक छात्रों के दिन-प्रतिदिन के व्यवहार तथा अपने परीक्षणों के द्वारा भी उनकी सृजनात्मकता का पता लगा लेते हैं। इसके लिए वे निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं- 
 
  • शिक्षक कक्षा में प्रतिदिन बालकों के कार्य एवं व्यवहार का सूक्ष्म निरीक्षण करते हैं। इस निरीक्षण के द्वारा वह बालकों की सृजनशक्ति की पहचान सरलता से कर सकते हैं।
  • शिक्षक बालकों के कार्य एवं व्यवहार का उनकी बौद्धिक क्षमता एवं उपलब्धियों का आंकलन करके उनकी सृजनात्मकता का पता लगा सकता है। इसे संचयी अभिलेख विधि कहते हैं।
  • कक्षा में बालकों की सृजनशीलता का पता लगाने के लिए उनसे छोटे-छोटे प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जैसे-तुम अपने स्कूल के पुस्तकालय में कौन-कौन से सुधार करना चाहोगे? यदि तुम्हें घर से भोजन और कपड़ा न मिले तो तुम क्या करोगे? भविष्य में तुम्हारे विद्यालय में कौन-से परिवर्तन होने की सम्भावना है? इस प्रकार के वार्तालाप द्वारा शिक्षक बालकों की सृजनशीलता, योग्यता और प्रवृत्तियों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 

(स) परीक्षणों के आधार पर

आधुनिक युग में बालकों की सृजनशीलता की जानकारी करने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। विभिन्न परीक्षाओं द्वारा कॉलेज एवं स्कूल दोनों ही स्तर पर सृजनात्मकता का मापन करने के लिए प्रयास किए गए हैं। इनमें से गिलफोर्ड और ई. पॉल टोरेन्स के परीक्षण अधिक लोकप्रिय हैं। गिलफोर्ड और मेरीफोर्ड ने कॉलेज स्तर के बालकों की सृजनात्मकता का मापन करने के लिए परीक्षणों का निर्माण किया है। इस परीक्षण बैटरी में 6 कारकों का प्रयोग किया गया है- 
 
(i) समस्या के प्रति संवेदनशीलता
(ii) लचीलापन
(iii) वाक्पटुता
(iv) मौलिकता
(v) विस्तार
(vi) पुनर्व्यवस्था
 
टोरेन्स ने 1968 ई० में एक परीक्षण तैयार किया जिसे “(Torrence Minnesota Test of Creative Thinking)” कहते हैं। यह परीक्षण वाक्पटुता, मौलिकता और विस्तार का मापन निम्नांकित उप-परीक्षणों के द्वारा करता है- 
 
(i) चित्र-आपूर्ति परीक्षण
(ii) वृत्त-परीक्षण
(iii) टिन के डिब्बों का उपयोग
(iv) प्रोडक्ट इम्प्रूवमेण्ट टास्क 
सृजनात्मकता का मापन करने के लिए रोर्शा स्याही परीक्षण का भी व्यापक प्रयोग किया जाता है। सन् 1960 ई० में हालैण्ड तथा कैंट हाईस्कूल के छात्रों की सृजनात्मकता के मापन के लिए “क्रियेटिव साइंस स्केल” “Creative Science Scale” का निर्माण किया गया। इसमें पाँच पद हैं। इन मनोवैज्ञानिकों ने “Creative Science Scale” का भी निर्माण किया है जिसमें ग्यारह पद हैं। यह मापनी भी हाईस्कूल के छात्रों के लिए है। 
 
भारतीय विद्वानों ने भी सृजनात्मकता के मापन के लिए विभिन्न परीक्षणों का निर्माण किया है। इनमें वी० के० पासी (1972) ने सृजनात्मकता के मापन के लिए हिन्दी और अंग्रेजी में अलग-अलग दो परीक्षणों का निर्माण किया। प्रो० वाकर मेंहदी ने (1973) सृजनात्मक चिन्तन के मापन हेतु शाब्दिक और अशाब्दिक दो परीक्षणों का निर्माण किया। 
 
प्रो. पासी के परीक्षण में निम्नलिखित 6 उप-परीक्षण हैं- 
 
1. The seeing problem test
2. The unusual uses test
3. The consequence test
4. The test of Inquisitiveness
5. The square puzzle test
6. The blocks test of creativity 
 
उक्त 6 उप-परीक्षणों में विश्वसनीयता 0.68 से 0.97 तक एवं वैधता का मान 0.30 से 0.74 तक है। प्रो. वाकर मेंहदी के सृजनात्मक चिन्तन के शाब्दिक परीक्षण में चार उप-परीक्षण हैं- 
 
(1) परिणाम परीक्षण
(2) असामान्य प्रयोग या वस्तुओं के नये-नये प्रयोग
(3) नवीन सम्बन्धों का परीक्षण
(4) वस्तुओं को मनोरंजक बनाने का परीक्षण 
 
उपरोक्त चारों परीक्षणों को पूरा करने का समय 48 मिनट है। ये परीक्षण वयस्कों और किशोरों के लिए हैं। इसका प्रयोग वैयक्तिक और सामूहिक दोनों स्तरों पर किया जा सकता है। 
 
प्रो. मेंहदी के सृजनात्मक चिन्तन के अशाब्दिक परीक्षणों में तीन उप-परीक्षण है- 
 
(1) चित्र बनाने की प्रक्रिया (Picture construction)
(2) चित्रपूर्ति की क्रियाएँ (Picture completion)
(3) रचनात्मक आकृतियाँ (Geometrical Figures) 
 
उपर्युक्त परीक्षण 35 मिनट में पूरा होता है। परीक्षण में विश्वसनीयता 0.93 से 0.95 तथा वैधता 0.33 से 0.38 तक है।

सृजनशील बालकों की शिक्षा (Education of Creative Children)

बालकों में सृजनात्मक शक्तियों का विकास करने के लिए विद्यालय के अनुकूल परिस्थितियों एवं वातावरण का निर्माण करना होगा। उन्हें स्वतन्त्र रूप से कार्य करने, सोचने, समझने, तर्क-वितर्क करने तथा खेलने-कूदने के अवसर प्रदान करने चाहिए। शिक्षक अपना व्यक्तित्व उन पर लादे नहीं बल्कि उनमें वैज्ञानिक खोज की भावना का विकास करें। शिक्षक उनके अन्दर नवीन खोजों के लिए जिज्ञासा जागृत करें। नये विचारों को मूर्त रूप देने तथा समस्या समाधान के नवीन उपायों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें। अतः बालकों के सृजनात्मकता के विकास हेतु उचित शिक्षा देने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए- 
 
(1) विद्यालय का योगदान– बालकों में सृजनशीलता का विकास करने के लिए विद्यालय निम्नलिखित बातों में अपना योगदान दे सकता है- 
 
(i) विद्यालय में कक्षा के अन्दर और उसके बाहर का वातावरण ऐसा हो जो सृजनात्मकता में सहायक हो। 
 
(ii) विद्यालय बालकों पर कठोर अनुशासन न लादें वरन् स्वानुशासन की भावना जागृत करें। 
 
(iii) सृजनशील बालकों के कार्यों, व्यवहारों एवं विचारों को समस्त छात्रों में प्रदर्शित करने की व्यवस्था विद्यालय द्वारा की जानी चाहिए। 
 
(iv) विद्यालय बालकों को स्वतन्त्र रूप से कार्य करने का अवसर तथा क्षेत्र प्रदान करें। 
(2) शिक्षक का योगदान– बालकों में सृजनात्मकता का विकास करने के लिए शिक्षक की भूमिका कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। शिक्षक का छात्रों के प्रति व्यवहार, शिक्षण का ढंग तथा मौलिकता एवं नवीनता के प्रति प्रोत्साहन जागृत करने का कार्य शिक्षक अच्छी तरह से कर सकता है और इस प्रकार बालकों में सृजनात्मकता का विकास किया जा सकता है। सृजनात्मकता के विकास के लिए शिक्षक निम्नलिखित कार्य कर सकता है- 
 
(i) शिक्षक के शिक्षण की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार की हो जिससे बालकों में सृजनात्मकता का विकास हो। 
 
(ii) शिक्षक बालकों को कक्षा में एवं कक्षा के बाहर पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करें जिससे उनमें सृजनात्मक चिन्तन विकसित हो सके। 
 
(iii) शिक्षक सृजनशील बालकों के शिक्षण के प्रति व्यक्तिगत ध्यान दें। 
 
(iv) बालकों के प्रति शिक्षक का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण हो। बालकों के विचित्र प्रश्नों को सुनकर शिक्षक में आवेश नहीं आना चाहिए। 
 
(v) शिक्षक का कार्य बालकों के कार्यों में सहयोग देना है। उन्हें आवश्यक उपयोगी निर्देश देना है। इससे बालकों में सृजनात्मकता की प्रकृति विकसित होती है। 
 
(vi) अध्यापक छात्रों में ऐसी प्रवृत्ति का विकास कर सकते हैं जिससे बालक परम्परागत कार्यों एवं विचारों से हटकर किसी नये सृजनशील मार्ग का अनुसरण कर सकता है। 
 
(vii) बालकों में सृजनात्मक वृत्ति का विकास करने के लिए शिक्षक का कर्तव्य है कि वह उनमें आत्मविश्वास, स्वतन्त्र निर्णयशक्ति एवं नवीन चिन्तन के भाव विकसित करे। 
 
मनोवैज्ञानिकों ने बालकों में सृजनात्मकता विकसित करने के लिए कुछ विशिष्ट शैक्षिक स्थितियों का उल्लेख किया है, जो निम्नवत् हैं-
  • कक्षा में शिक्षक बालकों को अपने विचारों को व्यक्त करने का पूरा अवसर प्रदान करें। 
  • बालक अपने द्वारा किए गए कार्यों एवं व्यवहारों का स्वयं मूल्यांकन करें। शिक्षक का यह दायित्व है कि वह छात्रों को स्वयं अपना मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करें। इससे उनमें सृजनात्मक वृत्ति का विकास होगा। 
  • विद्यालय की परिस्थितियाँ इस प्रकार की हों जिससे बालकों में अपने कार्य के प्रति आत्मविश्वास जागृत हो सके। बालकों को अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं में विश्वास होना चाहिए और इससे उनकी सृजनात्मकता में विकास होगा।

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