कई लेखकों ने उन कारकों का वर्णन किया है, जो छात्रों के अध्ययन पर उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त प्रभाव डालकर, उसको कम व अधिक मात्रा में प्रभावशाली व प्रभावहीन बनाने में प्रत्यक्ष योग दान देते हैं। रिस्क, बौसिंग, क्रो व क्रो ने निम्नलिखित कारक बताए हैं जो अध्ययन को प्रभावित करते हैं-
1. ध्यान की एकाग्रता
एक सफल अध्ययन के लिए सरल व कठिन, दोनों प्रकार के विषयों में ध्यान की एकाग्रता आवश्यक है। बिना एकाग्रता के छात्रों को ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है। पूर्ण एकाग्रता के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों को अपने अध्ययन के उद्देश्य के बारे में जानकारी हो।
2. अध्ययन के उद्देश्य
एक सफल अध्ययन के लिए यह आवश्यक है कि उसका कोई उद्देश्य हो। छात्रों के पास अध्ययन के लिए उद्देश्य अवश्य होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर अध्ययन नहीं कर पाएगा।
3. अध्ययन में थकान
4. अध्ययन के प्रति दृष्टिकोण
विभिन्न छात्रों में विभिन्न विषयों के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण होता है। यदि छात्रो के लिए अध्ययन का विषय रोचक होता है, तो उसके प्रति दृष्टिकोण साधारणतया सकारात्मक होता है तथा वे उसका अध्ययन करने के लिए वे स्वयं उत्साहित होते हैं। इसके विपरीत, यदि अध्ययन का विषय रोचक नहीं होता है, तो उसके प्रति उनका दृष्टिकोण नकारात्मक होता है व उनमें उसके अध्ययन से बचने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने नकारात्मक दृष्टिकोण का निम्न में से कई कारण बताते हैं-
- अध्ययन का विषय बहुत लम्बा है।
- इतने लम्बे विषय का अध्ययन करने में मैं सफल नहीं हो सकता हूँ।
- यदि हम इसका अध्ययन कर भी लें, तो हम इसका स्मरण नहीं रख सकते हैं।
- हमारे लिए इस विषय के अध्ययन की कोई उपयोगिता नहीं है।
- मुझमें इस विषय को समझने की योग्यता नहीं है।
5. अध्ययन में बाधाएँ
बाधाएँ दो प्रकार की होती हैं- बाह्य एवं आंतरिक। बाह्य के अंतर्गत विद्यालय व गृह के आस-पास होने वाले शोरगुल इत्यादि को सम्मिलित कर सकते हैं।
आंतरिक बाधाएं इस प्रकार हो सकती हैं जैसे अध्ययन के समय छात्र का मनोभाव, उसको व्यथित करने वाली परेशानियाँ, अध्ययन के प्रति उसका दृष्टिकोण, उसके उस दिन के संवेगात्मक अनुभव तथा उसमें भय, क्रोध, चिंता आदि की भावनाएँ।
6. छात्र की योग्यता
छात्र की योग्यता उसके अध्ययन को निश्चित रूप से प्रभावित करती है। उसे योग्यतानुसार ही अध्ययन में सफलता मिलती है। रिस्क ने छात्रों की योग्यता के अंतर्गत निम्न को प्रमुख स्थान दिया है –
- समझ कर पढ़ने की योग्यता।
- पढ़े हुए विषय से संबंधित पुस्तकों का प्रयोग करने की योग्यता।
- विभिन्न प्रकार के शब्द कोशों का प्रयोग करने की क्षमता।
- पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों का प्रयोग करने क्षमता।
- नक्शों, ग्राफों तथा चार्टों आदि को प्रयोग करने की योग्यता।
- संक्षेप में लिखी बातों को समझने की योग्यता।
- पढ़े विषय के मुख्य विचारों को चयन करने की योग्यता।
- निरर्थक विषय सामग्री को छोड़ देने की योग्यता।
- पढ़े हुए विषय को सुनियोजित रुप में संक्षेप में लिखने की योग्यता
- शीघ्रता से पढ़ने की योग्यता।
इन कारकों को स्मरण रखने के साथ-साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार, अध्ययन के कार्य में संलग्न रहना चाहिए। यह सम्भव है कि अध्ययन के अतिरिक्त कुछ अन्य कार्यों के प्रति भी उनका ध्यान आकृष्ट हो सकता है। ऐसी स्थिति में उसे अपना ध्यान उनकी ओर से हटाकर अध्ययन पर केंद्रित करना चाहिए।
अध्ययन आदतों की आवश्यकताएँ
छात्रों में अध्ययन की आदतों को विकसित करना सिर्फ उनके व्यक्तित्व के लिए ही नहीं है अपितु भावी जीवन के निर्माण के लिए भी आवश्यक है।
अध्ययन की प्रभावशाली आदतों का विकास न कर सकने के कारण ही वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकने में विफल होते हैं। बटरवैक (Butler week) ने उनकी विफलता का गहन अध्ययन करने के उपरान्त उसके चार मुख्य कारणों का उल्लेख किया है:
- छात्र कम अध्ययन करते हैं।
- वह अपने अध्ययन के उद्देश्य से अनभिज्ञ होते हैं।
- वह अध्ययन की जाने वाली सामग्री को संक्षेप में नहीं लिखते हैं।
- वह विषय – सामग्री से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तरों पर विचार नहीं करते हैं।
जो छात्र अध्ययन में सफलता प्राप्त करता है, वे साधारणतः अकेले अध्ययन करते हैं या अध्ययन की किसी दूसरी विधि का अनुसरण करते हैं। ये छात्र सफल होने के कारण अपने उद्देश्य को प्राप्त करते हैं। यदि इस उद्देश्य का संबंध उनकी किसी विशिष्ट इच्छा से होता है, तो वह अपनी सम्पूर्ण शक्ति को अध्ययन में लगा देता है।
किंतु यह बात कुछ ही छात्रों के लिए कही जा सकती है। अधिकांश छात्र अध्ययन में रुचि नहीं लेते हैं और उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं। ऐसे छात्रों को शिक्षक द्वारा सहायता दी जा सकती है। आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों में इस संबंध में कोई मतभेद नहीं है।