ग्राम पोजिटिव तथा ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया ग्राम स्टेनिंग क्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। इस स्टेन का प्रयोग सर्वप्रथम जीवाणु वैज्ञानिक ग्राम (Gram) ने 1884 में किया। इस अभिरंजन के फलस्वरूप ग्राम पोजिटिव बैक्टीरिया अभिरंजित हो जाते हैं तथा ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया अभिरंजित नहीं होते हैं। नीचे हम इनके अंतर के बारे में जानेंगे।
ग्राम पोजिटिव (Gram+ve) बैक्टीरिया | ग्राम नेगेटिव (Gram-ve) बैक्टीरिया |
ग्राम पोजिटिव bacteria की कोशिका भित्ति समांगी (homogeneous) तथा मोटी होती है। | ग्राम नेगेटिव bacteria की कोशिका भित्ति हेटेरोजीनस (heterogeneous) होती है तथा अपेक्षाकृत पतली होती है। |
इसमें लगभग 80% म्यूकोपेप्टाइड (mucopeptide) तथा शेष पॉलिसैकेराइड्स (polysaccharides) होते हैं। | इसमें 12% म्यूकोपेप्टाइड तथा शेष प्रोटीन, लिपोप्रोटीन, लिपोपॉलि-सैकेराइड्स (lipopolysaccharides) व फॉस्फोलिपिड होते हैं। |
इसकी कोशिका भित्ति में टिकोइक एसिड (teichoic acid) पाया जाता है। | इसमें टिकोइक एसिड नहीं पाया जाता है। |
इसकी कोशिका भित्ति अपेक्षाकृत दृढ़ होती है। | इसकी कोशिका भित्ति लचीली होती है। |
इसमें टिकोइक एसिड एण्टीजेनिक (antigenic) होता है। | इसमें लिपोपॉलिसैकेराइड्स एण्टीजेनिक होते हैं। |
इसमें प्रोटीन कम मात्रा में तथा कुछ प्रकार के ही एमिनो अम्ल पाए जाते हैं। | इसमें प्रोटीन अपेक्षाकृत अधिक तथा अनेक प्रकार के एमिनो अम्ल मिलते हैं। |
यह एण्टीबायोटिक के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। | ये एंटीबायोटिक के प्रति कम संवेदनशील होते हैं। |
ग्राम पोजिटिव bacteria में सभी प्रकार के स्पोर बनते हैं तथा सामान्यतः पोलर फ्लैजेला नहीं पाया जाता है। |
इनमें स्पोर नहीं बनते हैं तथा फ्लैजेला पोलर होते हैं। |
इसकी कोशिका भित्ति में लिपिड (lipids) बहुत कम मात्रा में पाया जाता हैं। | कोशिका भित्ति में लिपिड बहुत अधिक मात्रा में मिलते हैं। |