कोर्डेटा शब्द का अर्थ में नोटोकॉर्ड रखने वाले जीव। कोर्डेटा शब्द सन 1880 में Balfour ने दिया था। कोर्डेटा संघ के जंतुओं में पूरे जीवन भर या जीवन की किसी एक अवस्थ में शरीर को सहारा देने हेतु पृष्ठ सतह पर लम्बी, लचीली, व दृढ छड़ पाई जाती हैं जिसे मेरुदंड या नोटोकॉर्ड कहते हैं। जबकि जंतु जगत के वे प्राणी जिनमें जीवन की किसी भी अवस्था में भी नोटोकॉर्ड नहीं पाया जाता है उन्हें नॉन कोर्डेटा कहते हैं। आइये इन दोनों संघ के कुछ महत्वपूर्ण अंतर के बारे में जानते हैं।
कॉर्डेट्स (Chordates) |
नॉन-कॉर्डेट्स (Non-chordates) |
कॉर्डेट्स में केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र आहारनाल के पृष्ठ तल पर तथा देहभित्ति के ठीक नीचे स्थित होता है तथा यह खोखला एवं नालाकार होता है। |
नॉन-कॉर्डेट्स में केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र ठोस होता है तथा सदैव ही आहारनाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है। |
कॉर्डेट्स के जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में ग्रसनी विदर (pharyngeal clefts) या आशय विदर (visceral clefts) या क्लोम विदर अवश्य पाये जाते हैं। |
नॉन-कॉर्डेट्स में ग्रसनी विदर या क्लोम विदर अनुपस्थित होते हैं। |
कॉर्डेट्स में अस्थियों का बना हुआ ढाँचा होता है। यह शरीर के अन्दर स्थित होता है और अन्तः कंकाल (endoskeleton) कहलाता है। | नॉन-कॉर्डेट्स में या तो कंकाल होता ही नहीं है और अगर होता है तो केवल बाह्यकंकाल होता है जो निर्जीव काइटिनस पदार्थ का बना होता है। |
कॉर्डेट्स में शरीर के मुख्य अक्ष का वह भाग जो गुदा के पीछे स्थित होता है पूँछ कहलाता है। अधिकांश कॉर्डेट प्राणियों में पूँछ आजीवन बनी रहती है। इसमें पेशियाँ, नर्व कॉर्ड, नोटोकॉर्ड अथवा कशेरुक दण्ड (vertebral column) एवं रुधिर वाहिनियाँ होती हैं। | नॉन-कॉर्डेट्स में कॉर्डेट्स के समान पूँछ नहीं पायी जाती है। |
कॉर्डेट्स में हृदय आहारनाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है। |
नॉन-कॉर्डेट्स में हृदय आहारनाल के ऊपर स्थित होता है। |
कॉर्डेट्स में परिवहन तन्त्र अधिक विकसित होता है। यह बन्द प्रकार का होता है क्योकि इसमें रुधिर वाहिनियाँ निश्चित दीवारों वाली रुधिर केशिकाओं (blood capillaries) में समाप्त होती हैं। पृष्ठ महाधमनी या पृष्ठ रुधिर वाहिनी (dorsal aorta or dorsal blood vessel) में रुधिर आगे से पीछे की ओर बहता है। |
नॉन-कॉर्डेट्स का परिवहन तन्त्र अपेक्षाकृत कम विकसित होता है। अधिकांश नॉन-कॉर्डेट्स में खुला परिवहन तन्त्र होता है क्योंकि इनकी रुधिर वाहिनियाँ केशिकाओं में समाप्त न होकर भित्ति-विहीन रुधिर विवरों (blood spaces or lacuna) में समाप्त होती हैं तथा आंतरांग रुधिर में भीगे रहते हैं। इनकी पृष्ठ रुधिर वाहिनी में रुधिर बहने की दिशा पीछे से आगे की ओर होती है। अधर रुधिर वाहिनी (ventral blood vessel) में रुधिर आगे से पीछे की ओर बहता है। |
कॉर्डेट जन्तुओं में आहारनाल से एकत्रित किया हुआ रुधिर यकृत निवाहिका शिरा (hepatic portal vein) में पहुंचता है जो इस रुधिर को यकृत में ले जाती है और वहाँ केशिकाओं में विभाजित होकर यकृत कोशिकाओं को रुधिर पहुँचाती है। वे शिराएँ जो हृदय में पहुँचने से पहले अन्य अंग में रुधिर को पहुँचाती हैं, निवाहिका तन्त्र (portal system) बनाती हैं। |
नॉन-कॉर्डेट्स में ऐसा नहीं होता है। |
कॉर्डेट में हीमोग्लोबिन (श्वसन पदार्थ) लाल रुधिर कणिकाओं में पाया जाता है। |
हीमोग्लोबिन या कोई दूसरा श्वसन पदार्थ जैसे हीमोसायनिन रुधिर के प्लाज्मा में घुलित अवस्था में पाया जाता है। |
कॉर्डेट जन्तुओं में सीलोम निश्चित भागों में बँटा रहता है और प्रत्येक भाग का एक निश्चित कार्य होता है। ये भाग निम्नलिखित हैं: (a) पृष्ठीय भाग मायोसील (myocoel) (b) मध्य भाग नेफ्रोसील (nephrocoel) (c) अधर भाग स्प्लैंकनोसील (splanchnocoel) |
नॉन-कॉडेंट्स में देहगुहा या सीलोम आहारनाल तथा अन्य आन्तरांगों (visceral organs) के चारों ओर पायी जाती है। कुछ नॉन-कॉर्डेट समुदायों के प्राणियों में सीलोम होती ही नहीं है। |