साहचर्य का अर्थ सम्बंध अथवा संयोजन से होता है। Marx व Hilix (1978) ने यह बताया कि साहचर्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन दर्शनशास्त्र से किया गया है। पहला प्रश्न हमारे दिमाग में आता है – “How do we know? दर्शनशास्त्रियों ने इसका उत्तर देते हुए कहा ” Through our senses “. इस उत्तर को सुनकर एक प्रश्न और उत्पन्न हुआ कि “Where do the complex ideas come from since they are not directly sensed? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि- “The Complex Ideas comes from the association of similar ideas.” इस प्रकार हम कह सकते हैं कि साहचर्य की जड़े दर्शनशास्त्र में ही हैं। कुछ प्राचीन ग्रीक दर्शनशास्त्रियों का कथन है ” To a sequence of ideas in a train of thoughts.” साहचर्य शब्द का प्रयोग सबसे पहले ‘John lock‘ ने 1700 ई० में किया था।
साहचर्य का अर्थ (Meaning of Association)
जब दो या अधिक विचारों का इस प्रकार का सम्बन्ध हो कि उनमें में एक का स्मरण होने पर दूसरे की स्वतः ही याद आ जाती है, साहचर्य कहलाता है। दूसरे शब्दों में, किसी उत्तेजना (Stimulus) का प्रत्यक्षीकरण होने या उसकी प्रतिमा (Image) मस्तिष्क पटल पर आ जाने से उससे संबंधित घटनाओं का स्वतः ही स्मरण हो जाता है। जैसे-
- ‘दिन’ शब्द के सुनने पर ‘सूर्य’ या ‘रात्रि’ दोनो शब्दों में से एक का अपने आप स्मरण होना।
- ‘स्वच्छता’ शब्द के सुनने पर ‘गांधीजी’ का नाम अपने आप स्मरण होना है।
साहचर्य के अर्थ को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए कई psychologist ने जैसे जेम्स ड्रेवर (James Drever) ने 1968 में, इंग्लिश तथा इंगलिश (English and English) ने 1980 में, भाटिया (Bhatia) ने तथा Woodworth तथा Scholsberg ने 1976 में कई परिभाषाएँ दी थी जिनके आधार पर हम कहते सकते हैं कि साहचर्य व्यक्तिगत अनुभवों के समय स्थापित मनोवैज्ञानिक तथ्यों में कार्यात्मक संबंध है, जो एक घटना उपस्थित होने पर दूसरी घटना का स्मरण कराता है।
साहचर्य के प्रकार (Types of Association)
साहचर्य के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. खण्डित मुक्त साहचर्य (Discrete Free Association)
इसमें प्रयोज्य या विषयी को यह निर्देश दिया जाता है कि उद्दीपक शब्द के प्रस्तुत करने पर उसके मस्तिष्क में जो पहला शब्द आए वह तुरन्त बोल दे।
2. खण्डित नियन्त्रित साहचर्य (Discrete Controlled Association)
इस विधि और खण्डित मुक्त साहचर्य विधि (प्रथम विधि) में केवल यही अन्तर है कि इसमें प्रयोज्य से यह कहा जाता है कि वह एक विशिष्ट ढंग से उद्दीपक (stimulus) शब्दों का प्रत्युत्तर दे। जैसे- वह प्रत्येक उद्दीपक शब्द का विरोधी शब्द बोले या उद्दीपक शब्द से संबंधित किसी वस्तु का नाम ले।
3. निरन्तर मुक्त साहचर्य (Continuous Free Association)
इसमें प्रयोगकर्ता के उद्दीपक शब्द प्रस्तुत करने पर प्रयोज्य जितनी जल्दी से हो सकता है उतनी शीघ्रता से एक के बाद एक शब्द निरंतर बोलता चला जाता है, यह बोले गए शब्द एक श्रृंखला के रूप में होते हैं जिसमें बोला गया शब्द एक अगले बोले जाने वाले शब्द के क्रम में हो।
4. निरन्तर नियंत्रित साहचर्य (Continuous Controlled Association)
यह विधि निरन्तर मुक्त साहचर्य के सामान है केवल अन्तर इतना है कि इसमें प्रयोज्य से यह कहा जाता है कि वह अपने साहचर्यों को एक विशिष्ट प्रकार से सीमित कर दे। उदाहरण-किसी राज्य के शहरों के नाम बताने के लिए कहना ।