B.Ed. Sem 3-प्रश्नावली की सीमाएँ (दोष) (Limitations or Demerits of Questionnaire) 

B.Ed. Sem 3- Unit 2 notes

B.Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के तृतीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation in Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 

प्रश्नावली की सीमाएँ (दोष) (Limitations or Demerits of Questionnaire) 

प्रश्नावली के अर्थ, परिभाषा, गुण तथा महत्त्व के बारे में हम पहले ही पढ़ चुके हैं। लेकिन प्रश्नावली में कुछ दोष भी होते हैं। प्रश्नावली की सीमाएँ और दोष निम्नलिखित हैं- 
(1) केवल शिक्षितों का अध्ययन– प्रश्नावली में सूचनादाता को स्वयं पढ़कर उत्तर देना होता है। शिक्षित ही पढ़कर उत्तर लिख सकते हैं। इस प्रकार हम समाज के एक बहुत बड़े वर्ग (अशिक्षितों) के अध्ययन से वंचित रह जाते हैं। 
 
(2) अनुसन्धानकर्त्ता की सहायता का अभाव– एक प्रश्नावली में इस प्रकार के प्रश्न होना बड़ा मुश्किल है जो प्रत्येक सूचनादाता की समझ में आ जायें। कुछ प्रश्न अबोधगम्य हो सकते हैं, अथवा भाषा क्लिष्ट हो सकती है। इन कठिनाइयों के कारण तथा सूचना के न रहने से प्रायः प्रश्नावली वापिस लौटकर नहीं आतीं। 
 
(3) अस्पष्ट तथा खराब लिखावट– प्रायः सूचनादाता प्रश्नावली जल्दी-जल्दी में या पेन्सिल से भर देते हैं। कहीं-कही उत्तरों में कॉट-छाँट या पुनर्लेखन कर देते हैं। ऐसी प्रश्नावली प्रयत्न करने पर भी समझ में नहीं आती और न ही पढ़ी जाती है। अनुसन्धानकर्ता के पास अनुमान के सिवाय कोई राह नहीं दिखाई देने पर गलत परिणाम निकलने की सम्भावना रहती है। 
 
(4) गहन अध्ययन असम्भव– प्रश्नावली में छोटे उत्तर वाले प्रश्न ही अधिक होते हैं तथा प्रश्नावली सिर्फ ऐसी होती है जो 15-30 मिनट में भरी जा सके। फलतः महत्त्वपूर्ण खास-खास बातें ही प्रश्नावली में पूछी जाती हैं। सूक्ष्म उत्तरों के आधार पर गहन अध्ययन करना असम्भव होता है। 
 
(5) प्रतिनिधि निदर्शन का अध्ययन असम्भव– समाज के किसी निदर्शन में शिक्षित व अशिक्षित दोनों प्रकार के सूचनादाता आ सकते हैं जबकि प्रश्नावली शिक्षितों द्वारा ही भरी जाती हैं। अतः निदर्शन का प्रयोग प्रश्नावली में नहीं हो सकता है। 
(6) पक्षपातपूर्ण चयन– जैसा कि ऊपर बताया गया है, प्रश्नावली में सिर्फ शिक्षितों से सूचना एकत्र करते हैं। अनुसन्धानकर्त्ता सूचनादाताओं को चुनते समय पक्षपातपूर्ण प्रकार से उच्च शिक्षितों या शिक्षित को ही चुनता है तथा कम शिक्षित अथवा अशिक्षितों को छोड़ देता है। 
 
(7) अविश्वसनीयता– सूचनादाता प्रश्नावली में अपने हस्त-लेखन में उन सूचनाओं को लिखने में डरता है जो उसकी प्रतिष्ठा या सम्मान को प्रभावित करती हों। वह स्वयं की कमजोरियों, व्यक्तिगत तथ्यों आदि को प्रकट नहीं करता तथा सम्मान बनाने की इच्छा से बढ़ा-चढ़ाकर अवास्तविक सूचनाएँ देता है। गन्दे व अस्पष्ट लेखों के कारण अध्ययनकर्त्ता की कल्पना भी समाविष्ट हो जाती है। अतः प्रश्नावली द्वारा अप्रामाणिक व असत्य सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। 
 
(8) सही पतों का अभाव– अनुसन्धानकर्ता के लिए यह मालूम करना कि विषय से परिचित कौन-कौन से व्यक्ति हैं और उनका क्या सही पता है, बड़ा कठिन होता है। 
 
(9) उत्तर-प्राप्ति की समस्या – सूचनादाता के विषय से अनभिज्ञ, व्यस्त, रुचिविहीन होने के कारण प्रश्नावली उत्तर सहित कम प्राप्त होती है। बहुत-सी प्रश्नावली तो गलत पतों के कारण नष्ट हो जाती हैं। अनेक अनुगामी-पत्र एवं प्रार्थना-पत्र डालने पर भी मुश्किल से 15-20 प्रश्नावली ही वापस लौटकर आ पाती हैं। 
 
(10) पुनः परीक्षा सम्भव नहीं– यदि सूचनादाता किसी कारण चालाकी से या धोखे से परिपूर्ण सूचनाएँ भेजता है तो उसकी यथार्थता की परख नहीं की जा सकती है। प्रश्नावली सरल, सस्ती व शीघ्र प्राप्त करने का एक साधन है जिससे प्राप्त सूचनाओं के सम्बन्ध में सूचनादाता के सिवाय कोई नहीं जानता कि वे सत्य हैं या झूठ। उन्हीं पर विश्वास करना पड़ता है।

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