B.Ed. Sem 3- Unit 3 notes
B.Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के तृतीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation in Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है।
व्यक्तित्व मापन की विधियाँ (Methods of Measuring Personality)
शिक्षा-मनोविज्ञान के शैक्षिक प्रभाव एवं प्रगति को जानने के लिए किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व मापन का प्रश्न उठता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का परीक्षण करना बहुत कठिन कार्य है। इसके लिए किसी विशेष विधि को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के परीक्षण अथवा मापन की कुछ विधियों का निर्माण किया है जिन्हें निम्न चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
- वैयक्तिक विधियाँ (Subjective Methods)
- वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective Methods)
- प्रक्षेपण विधियाँ (Projective Methods)
- मनोविश्लेषण विधियाँ (Psycho-Analytic Methods)
1. वैयक्तिक विधियाँ (Subjective Methods)
इन विधियों के अन्तर्गत व्यक्तित्व का परीक्षण स्वयं परीक्षक करता है। यह जाँच व्यक्ति विशेष अथवा उसके परिचित से पूछताछ द्वारा की जाती है। इनमें निम्नलिखित चार विधियों की सहायता ली जाती है-
(i) व्यक्ति-इतिहास विधि (Case-History Method)
(ii) प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method)
(iii) साक्षात्कार अथवा भेंट विधि (Interview Method)
(iv) आत्म-कथा लेखन विधि (Autobiography Method)
(i) व्यक्ति इतिहास विधि– यह व्यक्तित्व मापन की एक अत्यन्त प्रचलित विधि है। इस विधि के द्वारा व्यक्ति अथवा बालक के गुणों, व्यवहार एवं मानसिक योग्यताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत सूचनाएँ अनेक स्रोतों से संकलित की जाती हैं, उदाहरण के लिए,
(क) व्यक्ति अथवा बालक से स्वयं पूछकर
(ख) माता-पिता से जानकारी प्राप्त कर
(ग) मित्रों अथवा पड़ोसियों से
(घ) सगे-सम्बन्धियों से
(ङ) परिवार के चिकित्सक से
(च) बालक के अध्यापक से
(छ) छात्रों के विद्यालय अभिलेखों से
उपर्युक्त स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं का समयबद्ध संकलन और विश्लेषण करके व्यक्ति के विकास-क्रम, रुचि, इच्छा, संवेग, सामाजिक सामंजस्य, व्यवहार सम्बन्धी असमानता और स्वभाव आदि का पता लगाया जाता है तथा उसके व्यक्तित्व का मापन किया जाता है। यह व्यक्तित्व मापन की एक सरल और व्यापक विधि है, परन्तु इसमें बालक के व्यक्तित्व के सन्दर्भ में प्राप्त सूचनाएँ अस्पष्ट, अपूर्ण और अपरिमार्जित होती हैं जिसके परिणामस्परूप व्यक्तित्व का ठीक-ठीक मापन नहीं हो पाता।
(ii) प्रश्नावली विधि– इस विधि में व्यक्तित्व के विभिन्न गुणों से सम्बन्धित प्रश्नों की सूची तैयार की जाती है और व्यक्ति को लिखित “हाँ” अथवा “नहीं” में उत्तर देना होता है। इस विधि को “कागज पेन्सिल परीक्षण” (Paper-Pencil Test) भी कहा जाता है। व्यक्ति द्वारा दिए गए उत्तरों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का परीक्षण किया जाता है।
(2) वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective Methods)
व्यक्तित्व मापन की वे विधियाँ जो बालक अथवा व्यक्ति के बाह्य व्यवहार का अध्ययन करके व्यक्तित्व का मापन करती हैं, उन्हें वस्तुनिष्ठ विधि कहा जाता है। इन विधियों में वैध और विश्वसनीय मानकीकृत विधियों का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तित्व की वस्तुनिष्ठ विधियों में निम्नलिखित प्रमुख हैं-
(i) नियन्त्रित निरीक्षण विधि (Control Observation Method)
(ii) निर्धारण मापी विधि (Rating Scale Method)
(iii) समाजमिति विधि (Sociometric Method)
(iv) शारीरिक क्रिया विधि (Physiological Method)
(v) व्यक्तित्व अनुसूचियाँ (Personality Invetries)
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की व्यक्तित्व अनुसूचियों का निर्माण किया है।
(3) प्रक्षेपण विधियाँ (Projective Methods)
व्यक्तित्व मापन की प्रक्षेपण विधियों का जन्म फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद से हुआ। फ्रायड ने प्रक्षेपण शब्द की व्याख्या करते हुए कहा “प्रक्षेपण का अर्थ उस प्रक्रिया से है, जिसमें व्यक्ति अपने भावों, विचारों, भावनाओं, इच्छाओं, संवेगों, स्थायी भावों एवं आन्तरिक संघर्षों को अन्य बाह्य जगत के माध्यम से सुरक्षात्मक रूप प्रदान करता है।”
प्रक्षेपण एक Defence Mechanism होता है जो व्यक्ति के आत्म की रक्षा करता है। यह एक अचेतन प्रक्रिया है। इस प्रकार जब व्यक्ति के सामने कोई अस्पष्ट उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तो वह अपने अचेतन के भावों, विचारों, संवेगों, अभिवृत्तियों एवं दमित इच्छाओं को उस पर आरोपित अथवा प्रक्षेपित कर देता है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति के अचेतन के विभिन्न पक्षों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ये सभी पक्ष व्यक्तित्व के अभिन्न अंग माने जाते हैं।
इन विधियों के अन्तर्गत परीक्षण सामग्री के रूप में स्याही के धब्बों, अपूर्ण वाक्यों और अस्पष्ट तस्वीरों अथवा कुछ विशेष प्रकार के चित्रों का प्रयोग किया जाता है। जिस परीक्षण सामग्री में चित्र अथवा विषयवस्तु स्पष्ट होती है उसे संरचित सामग्री (Structured Material) कहा जाता है। अस्पष्ट परीक्षण सामग्री को “असंरचित सामग्री” (Unstructured Material) कहा जाता है। इन्हीं सामग्रियों के सन्दर्भ में व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, भावनाओं, द्वन्द्वों, आकांक्षाओं और संवेगों को व्यक्त करता है जिनके आधार पर व्यक्तित्व का मापन किया जाता है। इन विधियों में प्रमुख हैं-
(i) रोर्शाक स्याही के धब्बों का परीक्षण (Rorschach’s Ink-Blot Test)
(ii) प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (Thematic Apperception Test)
(iii) बाल-सम्प्रत्यक्षण परीक्षण (Children Apperception Test)
(iv) वाक्य-पूर्ति परीक्षण (Sentence Completion Test)
(i) रोर्शाक स्याही के धब्बों का परीक्षण– इस विधि का आविष्कार स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हरमैन रोर्शाक ने 1921 ई० में किया। इस परीक्षण के अन्तर्गत 10 प्रामाणिक स्याही के धब्बों के कार्डों को प्रयुक्त किया जाता है। इन कार्डों में 5 बिल्कुल काले, 2 काले और लाल तथा 3 में कई रंग मिले होते हैं।
इस विधि का प्रयोग करने हेतु परीक्षक को विशेष रूप से प्रशिक्षित होना आवश्यक है। परीक्षण का प्रयोग करने से पूर्व परीक्षार्थी को ये आदेश दिए जाते हैं-भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को इन धब्बों में भिन्न-भिन्न वस्तुएँ दिखाई देती हैं। आपको ये धब्बे एक-एक करके दिखाये जायेंगे। प्रत्येक कार्ड को ध्यान से देखिए और बताइए कि आप इसमें क्या देखते हैं? आप जितनी देर तक किसी कार्ड को देखना चाहें, देख सकते हैं किन्तु जो वस्तुयें आपको इस चित्र में दिखाई देती हों उन्हें बताते जाइए। जब आप उसे पूरी तरह से देख लें तो उसे मुझे लौटा दें। एक धब्बा (चित्र) दिखाते हुए, यह क्या हो सकता है?
उपर्युक्त आदेशों को देने के पश्चात् एक-एक करके विद्यार्थी अथवा परीक्षार्थी को कार्ड दिखाये जाते हैं। परीक्षार्थी इन धब्बों को देखकर जो प्रतिक्रिया व्यक्त करता है उसे लिखते जाते हैं।
विश्लेषण– परीक्षार्थी के उत्तरों का विश्लेषण निम्न चार बातों के आधार पर किया जाता है:
- स्थान– इसमें यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी ने धब्बे के किसी विशिष्ट भाग के प्रति प्रतिक्रिया की है अथवा पूरे धब्बे के प्रति।
- गुण– इसमें यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी की प्रतिक्रिया धब्बे की बनावट के फलस्वरूप है अथवा विभिन्न रंगों के कारण अथवा गति के कारण।
- विषय– इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी धब्बे में मनुष्य की आकृति देखता है, पशु की आकृति देखता है अथवा किसी वस्तु की आकृति या प्राकृतिक दृश्यों की आकृति देखता है।
- समय– इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी ने प्रत्येक धब्बे को दिखाने के हेतु कितना समय लिया है।
मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर व्यक्ति की चेतन और अचेतन विशेषताओं की जाँच की जा सकती है। इस परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की सामाजिकता, संवेगात्मक प्रतिक्रिया, रचनात्मक और कल्पनात्मक शक्तियों का विकास, समायोजन क्षमता और अन्य व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं का पता लगाया जाता है।
(ii) प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण-इस विधि को टी. ए. टी. टेस्ट (T. A. T. Test) भी कहा जाता है। इस विधि के निर्माण का श्रेय मार्गन एवं मरे को जाता है। इसका प्रकाशन 1935 ई० में हुआ। इस विधि में 30 चित्र होते हैं, जिनमें 10 पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए और 10 पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए होते हैं, परन्तु सामान्यतः केवल 20 चित्रों का ही प्रयोग किया जाता है। इनमें से एक चित्र खाली होता है। इस विधि में व्यक्ति को एक-एक चित्र दिखाया जाता है और उससे उस चित्र से सम्बन्धित कहानी बनाने के लिए कहा जाता है। कहानी बनाने के लिए समय का कोई बन्धन नहीं होता।
व्यक्ति को कहानी बनाने के लिए कहने से पूर्व उससे कहा जाता है कि-चित्र देखकर बताइए कि पहले क्या घटना हो गयी और अब क्या घटना घटित हो रही है। चित्र ध्यान से देखिए और यह बताइए कि चित्र में जो व्यक्ति है उसके क्या-क्या भाव हैं और क्या-क्या विचार हैं तथा इस कहानी का अन्त किस प्रकार होगा। व्यक्ति द्वारा कहानी बनाने पर उसका विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।
(iii) बाल सम्प्रत्यक्षण विधि– इसे सी. ए. टी. (C. A. T.) टेस्ट अथवा बालकों का बोध परीक्षण भी कहा जाता है। यह परीक्षण बालक-बालिकाओं के लिए है। इसमें 10 चित्र होते हैं जो किसी न किसी जानवर से सम्बन्धित होते हैं। इनके माध्यम से बालकों की विभिन्न समस्याओं, जैसे-पारस्परिक अथवा भाई-बहन की प्रतियोगिता, संघर्ष आदि के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त की जाती है और प्राप्त सूचनाओं के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।
(iv) वाक्यपूर्ति अथवा कहानी पूर्ति परीक्षण– इस विधि के अन्तर्गत बालकों के सामने अधूरी कहानियाँ तथा अधूरे वाक्य रखे जाते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए कहा जाता है। वाक्य की पूर्ति करने में बालक अपनी इच्छाओं, भय और अभिवृत्तियों को अभिव्यक्त करता है।
(4) मनोविश्लेषण विधियाँ (Psycho-Analytic Methods)
मनोविश्लेषण विधि के दो रूप हैं जिनका उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
(अ) स्वप्न विश्लेषण विधि (Dream Analysis Method)– स्वप्न विश्लेषण मनोचिकित्सा विधि है। फ्रायड के अनुसार स्वप्न अचेतन मन की गहराई में किसी विषयवस्तु के बारे में महत्त्वपूर्ण संकेत है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति के अपने स्वप्नों के आधार पर उसकी विभिन्न समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया जाता है और साथ ही उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। पहले तो स्वप्नों को याद रखने में पर्याप्त कठिनाई होती है, परन्तु स्वतन्त्र साहचर्य के अभ्यास द्वारा स्वप्नों को याद करने में सुविधा होती है। स्वप्नों की विषयवस्तु और उसमें छिपी समस्याओं को स्वतन्त्र साहचर्य का आधार बनाया जाता है।
(ब) स्वतन्त्र साहचर्य विधि (Free-Word Association Method)-इस विधि में 50 से 100 तक उद्दीपन शब्द होते हैं। परीक्षक बारी-बारी से एक-एक शब्द बोलता है व्यक्ति इन शब्दों को सुनकर जो कुछ उसके मन में आता है, कह देता है। उसके द्वारा कहे गए शब्दों को लिख लिया जाता है और उसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।
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