B.Ed. Sem 3-मूल्यांकन के उद्देश्य तथा महत्व (Objectives and Importance of Evaluation)

B.Ed. Sem 3- Unit 1 notes

B. Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के तृतीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation in Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 

मूल्यांकन के उद्देश्य तथा महत्व (Objectives and Importance of Evaluation)

मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Evaluation)

मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं- 
 
  1. शिक्षण में वांछित परिष्करण अथवा सुधार करना।
  2. शिक्षा के उद्देश्यों को स्पष्ट करके उनकी उपयुक्तता की जाँच करना।
  3. परिवर्तित तथा आवश्यकतानुसार सफलता की मात्रा के आधार पर शैक्षिक कार्यों एवं पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना।
  4. मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थियों को उचित ढंग से अधिगम की प्रेरणा प्रदान करना।
  5. छात्रों का वर्गीकरण करके उनकी उन्नति के लिए उन्हें आवश्यक ज्ञान प्रदान करना।
  6. अध्यापक, शिक्षण-पद्धति, विषयवस्तु, पुस्तकों एवं अन्य शैक्षिक सामग्री की उपयुक्तता की जाँच करना भी इसका एक उद्देश्य है।
  7. शिक्षा में मूल्यांकन का उद्देश्य विद्यार्थियों की व्यवहार सम्बन्धी कमियों, परिवर्तनों एवं कठिनाइयों की जाँच करना होता है।
  8. इसके द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है यह ज्ञात किया जाता है।
  9. बालकों की भावी उपलब्धियों के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करना।
  10. विद्यार्थियों को परिश्रम के लिए प्रेरित करना।
  11. विद्यार्थियों को उचित शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने में सहायता करना।
  12. विद्यार्थियों की योग्यताओं, मनोवृत्तियों, रुचियों, कुशलताओं तथा निहित क्षमताओं का ज्ञान प्राप्त करना।
  13. शिक्षण द्वारा प्राप्त तथ्यात्मक ज्ञान विद्यार्थियों ने किस सीमा तक प्राप्त किया है इसको ज्ञात करना मूल्यांकन का एक उद्देश्य है।
  14. शिक्षण, पाठ्यक्रम एवं पाठ्य-पुस्तक आदि में सुधार करना। 

मूल्यांकन का महत्त्व (Importance of Evaluation)

शैक्षिक प्रक्रिया में मूल्यांकन का अत्यन्त महत्त्व है। मूल्यांकन के महत्त्व निम्नलिखित है- 
 
  1. उद्देश्य प्राप्ति के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करने हेतु– मूल्यांकन एवं उद्देश्यों का का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। उद्देश्यों के अभाव में मूल्यांकन संभव नहीं है। शिक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत छात्रों में निश्चित क्षमताओं, योग्यताओं तथा प्रदत्त ज्ञान के सम्बन्ध में अनेक उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है इसका ज्ञान मूल्यांकन द्वारा ही किया जा सकता है। यदि इन उद्देश्यों की जानकारी मूल्यांकन द्वारा नहीं मिलती है तो शिक्षण तथा अधिगम की प्रक्रिया सुचारु रूप से नहीं चल सकती है और हमें यह भी ज्ञात नहीं हो पाता है कि छात्र में किस क्षमता का विकास करना है, छात्र को कौन-सी तथा किस मात्रा में अनुभव प्रदान करना है, किस प्रकार की योग्यता से उसकी क्षमता का विकास हो सकता है तथा छात्र में किस प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं। 
  2. प्रदत्त ज्ञान की सीमा निर्धारण हेतु– निर्धारण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निहित क्षमताओं का ज्ञान तथा निहित क्षमताओं की जानकारी एवं विकास के लिए शिक्षण प्रक्रिया द्वारा प्रदत्त अनुभव अथवा विषय-वस्तु की सीमा का ज्ञान भी बहुत आवश्यक है। अनुभवों को ग्रहण करके तथा उसका प्रयोग करके ही छात्र अपनी सफलता तथा असफलता के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करता है। इस जानकारी के आधार पर ही उद्देश्य प्राप्ति अथवा शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावपूर्णता के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाला जा सकता है। छात्र द्वारा प्राप्त पूर्व ज्ञान की जानकारी के अभाव में यह निर्धारित नहीं किया जा सकता है कि छात्र को नया ज्ञान कहाँ से देना प्रारम्भ किया जाए या किस उद्देश्य की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है। 
  3. निहित क्षमताओं की जानकारी– शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। सर्वांगीण विकास से आशय बालक की मानसिक, शारीरिक एवं भावात्मक विकास में सहयोग प्रदान करने से होता है। मानसिक, शारीरिक एवं भावात्मक, ये तीनों ही शक्तियाँ अनेक विशिष्ट क्षमताओं का सामूहिक स्वरूप हैं। बालक के व्यवहार का संचालन व नियंत्रण, इन क्षमताओं के द्वारा ही होता है। शिक्षण प्रविधि के द्वारा छात्रों को विभिन्न अनुभव प्रदान किया जाता हैं, जिनको ग्रहण करके छात्र अपनी योग्यताओं के द्वारा प्रयोग करता है। उसकी अभिव्यक्ति से इन अमूर्त क्षमताओं की जानकारी होती है। इन अमूर्त क्षमताओं की जानकारी के अभाव में छात्र के विकास की कल्पना करना असंभव है, क्योंकि जब हमें यही मालूम नहीं है कि छात्र की वर्तमान स्थिति क्या है, तो यह स्वाभाविक ही है कि हम यह निश्चित नहीं कर सकते कि छात्र का विकास किस दिशा में तथा कितना करना है। उद्देश्यों के ज्ञान के अभाव में शिक्षण प्रविधि के निर्धारण का कोई महत्त्व नहीं है। 
  4. छात्रों को प्रेरित करने हेतु– बालक की जाँच करने के पश्चात् ही हम उसकी सफलता एवं असफलता का ज्ञान कर सकते हैं। मूल्यांकन द्वारा सफल घोषित छात्र निर्धारित दिशा में उत्साह व उमंग के साथ आगे बढ़ता है। मूल्यांकन द्वारा मिली सफलता की जानकारी के आधार पर ही छात्र की प्रशंसा की जाती है, पदोन्नत किया जाता है, उपहार प्रदान किये जाते हैं तथा उसे सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है, इन सबके परिणामस्वरूप छात्र को आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा साथ ही यदि बालक मूल्यांकन द्वारा असफल घोषित किया जाता है तो उस बालक की कठिनाइयों का निवारण करके, उसे सफलता प्राप्ति का उचित मार्ग बतलाया जाता है तथा निर्देशन द्वारा यह ज्ञान भी कराया जाता है कि उसे किन साधनों, उद्देश्यों एवं मार्गों की आवश्यकता व्यावहारिक अथवा शैक्षिक क्षेत्र में है। 
  5. शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावोत्पादकता, परिवर्तन व आवश्यक सुधार की जानकारी हेतु– शिक्षण प्रक्रिया के मुख्य अंग शिक्षक, शिक्षार्थी, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, उद्देश्य, सहायक सामग्री एवं मूल्यांकन हैं। किसी भी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इन समस्त शिक्षण अंगों को जहाँ एक ओर शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावशीलता का ज्ञान प्राप्त होता है वहीं दूसरी ओर प्राप्त न होने पर प्रभावशून्यता का भी ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रभावशून्यता की स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता होती है और शिक्षण प्रक्रिया के समस्त अंगों को पुनः नियोजित एवं निर्देशित करना पड़ता है। यदि प्रभाव बहुत कम होता है तो इन समस्त अंगों में पूर्णरूप से परिवर्तन के स्थान पर यह ज्ञात किया जाता है कि शिक्षण-प्रक्रिया के किस अंग में परिष्करण की आवश्यकता है उसके बाद पुनः निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनी दिशा में अग्रसरित होते हैं। 
  6. बालक की उपलब्धि की जानकारी हेतु– परीक्षा के अन्तर्गत छात्र की लिखित अभिव्यक्ति अथवा छात्र का व्यवहार, शिक्षण को यह निष्कर्ष निकालने में सहयोग प्रदान करता है कि छात्र में कितनी योग्यता व क्षमता है या निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है। छात्र की अभिव्यक्ति एवं व्यवहार से ही यह भी ज्ञात किया जाता है कि छात्र को कितनी सफलता या असफलता प्राप्त हुई है। इस जानकारी के द्वारा ही छात्र की कठिनाइयों को ज्ञात किया जा सकता है, उसके भविष्य के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जा सकता है तथा उसकी कठिनाइयों के निदान के लिए आधार प्रदान किया जा सकता है। 
 
उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि मूल्यांकन के अभाव में, शिक्षण-प्रक्रिया द्वारा छात्र का विकास असम्भव है। मूल्यांकन उद्देश्यों के निर्धारण और नियोजन के लिए बहुत आवश्यक है।

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