गोखले बिल (Gokhle Bill, 1910) का विरोध किसने किया 

B.Ed. Sem 4- Unit 1 notes

B. Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के चतुर्थ सेमेस्टर के विषय समकालीन भारत एवं शिक्षा (Contemporary India and Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 

गोखले बिल (Gokhle Bill, 1910) का विरोध

गोखले बिल के विरोध में सरकार का तर्क

गोखले बिल को केन्द्रीय धारा सभा में प्रस्तुत करने के बाद प्रान्तीय सरकारों, विश्वविद्यालयों एवं स्थानीय संस्थाओं का मत जानने के लिए इसे उनके पास भेजा गया। उसके बाद 16 मार्च, 1912 . को धारा सभा में बिल को बहस के लिए रखा गया। दो दिन तक उस पर काफी बहस हुई। सरकार ने बिल को अस्वीकार करने की दृष्टि से उसके विरोध में ये तर्क प्रस्तुत किए – 
  1. यह बिल समय से पूर्व अनावश्यक है
  2. अनिवार्यता का सिद्धान्त शिक्षा सिद्धान्त के प्रतिकूल है
  3. प्रान्तीय जनमत स्वयं अनिवार्यता के पक्ष में नहीं है
  4. प्रान्तीय सरकारें भी अनिवार्य शिक्षा के विरुद्ध हैं
  5. स्थानीय संस्थायें अनिवार्य शिक्षा के विरुद्ध हैं
  6. सरकार के समक्ष प्रशासन सम्बन्धी अनेक अड़चनें आयेंगी।
बिल का रद्द किया जाना– गोखले ने सरकार के विरोध का खण्डन किया। अपने मत की पुष्टि के लिए उन्होंने बड़ौदा राज्य तथा पश्चिमी देशों के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए जहाँ कि प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य थी।
 
सरकारी प्रवक्ता हरकोर्ट बटलर ने इसके प्रत्युत्तर में कहा था- “अनिवार्य शिक्षा का पौधा पश्चिमी देशों का पौधा है, यह भारत की भूमि में नहीं पनप सकता” मदन मोहन मालवीय और जिन्ना ने बिल का स्वागत किया। भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि और जमींदार शिक्षा के मार्ग में रोड़ा बने। अन्त में बिल 13 वोटों के विरुद्ध 38 वोटों से रद्द कर दिया गया किन्तु कर्मनिष्ठ गोखले अपनी इस पराजय से हतोत्साहित नहीं हुए क्योंकि वे पहले से ही जानते थे और उन्होंने कहा था- “मैं जानता हूँ कि मेरे बिल का दिन के समाप्त होने से पहले ही बहिष्कार कर दिया जायेगा। मुझे कोई शिकायत नहीं है। मैं इससे हतोत्साहित नहीं होता। तो भी मैंने सदैव यह अनुभव किया है और करता हूँ कि आज की पीढ़ी के हम भारत के नागरिक अपने देश की सेवा केवल अपनी आवश्यकताओं द्वारा ही कर सकते हैं।

गोखले बिल का प्रभाव

यद्यपि सरकार ने गोखले का बिल अस्वीकार कर दिया लेकिन उनके प्रयास असफल नहीं हुए। इस बिल ने सरकार और जनता दोनों का ध्यान जन-साधारण की शिक्षा की ओर आकर्षित किया। दिसम्बर, 1911 ई. में सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में प्राथमिक शिक्षा के लिए पचास लाख रुपये की धनराशि प्रदान करने की घोषणा की। 6 जनवरी, 1912 ई. को कलकत्ता विश्वविद्यालय में अपने भाषण में जार्ज पंचम ने भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए अपनी रुचि व्यक्त करते हुए कहा- “मेरी इच्छा है कि भारत में विश्वविद्यालयों का जाल सा बिछ जाय जिससे कृषि, व्यवसाय तथा अन्य क्षेत्रों में लोग लग सकें और राजभक्त, बहादुर एवं कुशल नागरिक बन सकें।

गोखले के बिल से प्रभावित होकर भारत सरकार ने प्रान्तीय सरकारों को प्राथमिक शिक्षा की ओर ध्यान देने के लिए आदेश दिया जिसके परिणामस्वरूप देश के विभिन्न प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए “अनिवार्य शिक्षा अधिनियम” बनाये गये और तदनुकूल सभी बड़े प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी। शिक्षित वर्ग एवं राजनीतिक दलों पर भी गोखले के बिल का व्यापक प्रभाव पड़ा जिसके कारण उन्होंने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में रुचि ली। यद्यपि गोखले के बिल को सरकार ने अस्वीकार कर दिया लेकिन सरकार को अपनी शिक्षा नीति पर फिर से विचार करना पड़ा।

सरकार ने 1913 ई. में अपने शिक्षा-नीति सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव में अपनी नीति में आमूलचूल परिवर्तन करके शिक्षा के प्राथमिक तथा अन्य अंगों में सुधार करने की सिफारिश की। इसके परिणामस्वरूप ही देश के सभी प्रान्तों में स्थानीय संस्थाओं द्वारा प्राथमिक विद्यालयों का निर्माण हुआ।

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