B.Ed. Sem 3- Unit 3 notes
B.Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के तृतीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation in Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है।
व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality)
भिन्न भिन्न व्यक्तियों का भिन्न भिन्न व्यक्तित्व होता है। इसके कई प्रकार होते हैं जिसका वर्गीकरण कई मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रकार से किया है। इनमें कई प्राचीन भारतीय और यूनानी साहित्यिक विचारकों ने अपने-अपने तरीकों से व्यक्तित्व के प्रकार को बताया है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक भी विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व का उल्लेख करते हैं। मोटे तौर पर तीन दृष्टिकोणों से व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया जाता है-
- शरीर रचना का दृष्टिकोण
- समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण
- मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
(1) शरीर रचना का दृष्टिकोण
शरीर रचना के दृष्टिकोण से आयुर्वेदशास्त्र, यूनानी विचारकों, कैशमर, शैल्डन, वार्नर, कैनन आदि के वर्गीकरण उल्लेखनीय हैं-
(i) भारतीय आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार व्यक्तित्व– भारतीय आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार व्यक्तित्व शरीर रचना की दृष्टि से तीन प्रकार का होता है-
- कफ प्रधान-इस तरह के व्यक्तित्व के लोग मोटे, शान्त और कार्य करने वाले होते है।
- पित्त प्रधान– पित्त प्रधान व्यक्ति दुर्बल, शीघ्र कार्य करने वाले और चंचल होते हैं।
- वात् प्रधान– वात् प्रधान व्यक्ति मध्यम शरीर वाले, न दुर्बल और न मोटे एवं चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।
(ii) क्रैशमर का वर्गीकरण– क्रैशमर ने शरीर रचना के आधार पर चार प्रकार के व्यक्तित्व बताये हैं-
- लम्बकाय (Athenic)– इस तरह के व्यक्ति दुबले-पतले होते हैं, इनका शरीर लम्बा होता है, भुजाएँ पतली होती हैं, सीना छोटा होता है और हाथ-पैर लम्बे एवं पतले होते हैं। इस तरह के व्यक्ति अपनी आलोचना सुनना पसन्द नहीं करते और दूसरों की आलोचना में इन्हें आनन्द आता है।
- सुडौलकाय (Athletic)– इस तरह के व्यक्ति हृष्टपुष्ट और स्वस्थ होते हैं। इनका सीना चौड़ा, मजबूत, भुजाएँ पुष्ट एवं मांसपेशीय होती हैं। ये व्यक्ति दूसरों की इच्छानुसार समायोजन कर लेते हैं।
- गोलकाय (Pyknic)– इस तरह के व्यक्ति कद में नाटे, छोटे, गोल और चर्बी वाले होते हैं। ये आरामतलब और सामाजिक होते हैं।
- डायसप्लास्टिक (Dysplastic)– इस तरह के व्यक्तियों में लम्बकाय, सुडौलकाय और गोलकाय तीनों प्रकार का मिश्रण होता है। ये लोग साधारण शरीर वाले होते हैं।
(iii) शैल्डन का वर्गीकरण– अमेरिकी मनोवैज्ञानिक शैल्डन ने शरीर रचना के आधार पर व्यक्तित्व के निम्न रूप बताये हैं-
- गोलाकार (Endomorphic)– गोलाकार व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अधिक मोटे, गोल, कोमल और स्थूल शरीर वाले होते हैं। इनके पाचक अंग विकसित होते हैं तथा ये अधिक भोजन करने वाले होते हैं। ये आराम पसन्द, अत्यधिक सोने वाले, आमोदप्रिय, स्नेह पाने के इच्छुक, सज्जन, विवेकहीन और जल्दी प्रसन्न होने वाले होते हैं।
- आयताकार (Mesomorphic)– इस तरह के व्यक्ति स्वस्थ और सुसंगठित शरीर वाले होते हैं। इनमें शक्ति एवं स्फूर्ति अधिक होती है। वे साहसी, क्रियाशील और उद्योगशील होते हैं।
- लम्बाकार (Ectomorphic)– इस तरह के व्यक्ति दुबले-पतले, कोमल और कमजोर शरीर वाले होते हैं। वे संकोची स्वभाव के, मन्द भाषी, एकान्तप्रिय, संयमी और संवेदनशील होते हैं।
(2) समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण
स्प्रैन्जर ने सामाजिक भावना एवं कार्य के आधार पर व्यक्तित्व के जो रूप बताये हैं उनका उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
(i) सैद्धान्तिक (Theoretical)– इस तरह के व्यक्ति सिद्धान्तों पर अधिक बल देते हैं। वैज्ञानिक, दार्शनिक, समाज-सुधारक आदि इसी कोटि में आते हैं।
(ii) आर्थिक (Economical)– इस तरह के व्यक्ति सभी वस्तुओं का मूल्यांकन आर्थिक दृष्टि से करते हैं। व्यापारी वर्ग को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।
(iii) धार्मिक (Religious)– धार्मिक व्यक्ति ईश्वर और अध्यात्म पर आस्था रखते हैं। साधु, संत, योगी और दयालु व्यक्ति इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
(iv) राजनीतिक (Political)– राजनीतिक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति सत्ता एवं प्रभुत्व में विश्वास रखते हैं। इस तरह के व्यक्तियों की दूसरों पर शासन करने की इच्छा होती है और वे राजनीतिक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं। नेता इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।
(v) सामाजिक (Social)– इस तरह के लोगों में सामाजिक गुण बहुत अधिक पाये जाते हैं तथा वे सामाजिक कल्याण में विशेष रुचि लेते हैं। समाज सुधारक इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।
(vi) कलात्मक (Aesthetic)– इस तरह के लोग कला और सौन्दर्य में विशेष अभिरुचि रखते हैं। वे प्रत्येक वस्तु को कला की दृष्टि से देखते हैं। कलाकार एवं चित्रकार आदि इसी वर्ग में आते हैं।
(3) मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
युंग, मार्गन, थार्नडाइक, टरमैन, कैटेल और स्टीफेन्सन आदि ऐसे कई कई विद्वान हैं जिन्होनें मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण और लक्षणों के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है। यहाँ इनका उल्लेख किया जा रहा है-
(i) युंग का वर्गीकरण– युंग ने व्यक्तित्व के जो रूप बताये हैं, वे हैं-
(अ) अन्तर्मुखी व्यक्तित्व
(ब) बहिर्मुखी व्यक्तित्व
(स) उभयमुखी व्यक्तित्व
(अ) अन्तर्मुखी व्यक्तित्व (Introvert Personality)– ऐसे व्यक्ति जो अपना स्वभाव, आदतें एवं गुण बाह्य रूप से प्रकट नहीं करते हैं अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति कहलाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का ध्यान विशेषकर अपनी ओर ही केन्द्रित रहता है और वे अपने में खोये रहते हैं, बाह्य जगत की उन्हें कोई चिन्ता नहीं रहती है। अन्तर्मुखी व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएँ हैं-
- अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बहुत कम बोलते हैं, वे लज्जाशील होते हैं और एकान्त में रहना पसन्द करते हैं।
- इस तरह के व्यक्ति बहुत अधिक चिन्तन करते हैं और स्वयं के विचारों को अपने तक ही सीमित रखते हैं।
- ये संकोची स्वभाव के होते हैं।
- इस तरह के व्यक्ति चिन्ताग्रस्त रहते हैं और सन्देही एवं सावधान रहते हैं। वे शीघ्र घबरा जाते हैं।
- ऐसे व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों के प्रति सत्यनिष्ठ होते हैं और सामाजिक व्यवहार से दूर-दूर से रहते हैं। वे अपने में ही मस्त रहते हैं।
- वे प्रत्येक कार्य को सोच-विचार कर करते हैं।
(ब) बहिर्मुखी व्यक्तित्व (Extrovert Personality)– बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोगों की रुचि बाहरी जगत में होती है और उनका स्वभाव सांसारिक बातों में अनुरक्त रहने का होता है। इस तरह के व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों में निम्न विशेषताएँ होती हैं-
- वे सामाजिक होते हैं, सामाजिक जीवन में अधिक रुचि लेते हैं और समाज में सामंजस्य स्थापित करने हेतु सदैव सतर्क रहते हैं।
- इस तरह के व्यक्ति आशावादी होते हैं और परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं के अनुकूल अपने को व्यवस्थित कर लेते हैं।
- बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति व्यावहारिक जीवन में सफल रहते हैं। वे अवसरवादी प्रकृति के होते हैं और शीघ्र ही लोकप्रिय बन जाते हैं। इस तरह के व्यक्ति अधिकतर सामाजिक, राजनीतिक अथवा व्यापारिक नेता, अभिनेता और खिलाड़ी बनते हैं।
- इस तरह के व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करके अपना काम निकाल लेते हैं।
- इस तरह के व्यक्ति चिन्तामुक्त होते हैं। वे धन और बीमारियों आदि की परवाह नहीं करते। उनका लक्ष्य आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करना होता है। वे वर्तमान में ही प्रसन्न रहते हैं और उन्हें भविष्य की चिन्ता नहीं घेरती।
- इस तरह के व्यक्तियों में आत्मविश्वास चरम सीमा पर होता है। वे कभी-कभी अहंवादी और अनियन्त्रित भी हो जाते हैं।
(स) उभयमुखी व्यक्तित्व (Ambivert Personality)– अधिकतर विद्वान यह मानते हैं कि बहुत कम व्यक्ति इस तरह के होते हैं जो पूरी तरह से अन्तर्मुखी हो अथवा बहिर्मुखी हों। अधिकतर लोगों में दोनों प्रकार के गुणों का मिश्रण होता है और वे उभयमुखी होते हैं। इस तरह के व्यक्ति अन्तर्मुखी गुणों को विचार में ला सकते हैं तथा बहिर्मुखी गुणों को कार्य रूप में स्थान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति अच्छा लेखक और वक्ता दोनों ही हो सकता है, कोई व्यक्ति सामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करता है परन्तु वह कोई कार्य अकेले में रहकर ही करना पसन्द करता है। उभयमुखी व्यक्ति अपने और समाज दोनों का ही लाभदेखते हैं।
(ii) थार्नडाइक का वर्गीकरण– थार्नडाइक ने चिन्तन एवं कल्पना के आधार पर व्यक्तियों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। उसके वर्गीकरण का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
(अ) सूक्ष्म विचारक– इस तरह के व्यक्ति कोई भी कार्य करने से पहले उसके पक्ष और विपक्ष में भलीभाँति विचार करते हैं। ये गणित, भौतिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र और तर्कशास्त्र में अधिक रुचि लेते हैं।
(ब) प्रत्यय विचारक– इस तरह के व्यक्तियों को विचार करने हेतु शब्द संख्या, संकेत अथवा चिन्हों से सहायता देना होता है। गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी आदि इसी श्रेणी में आते हैं।
(स) स्थूल विचारक– इस तरह के व्यक्ति क्रियाशीलता पर अधिक बल देते हैं और इनके अनुसार स्थूल वस्तुओं के माध्यम से सोचने-विचारने में सफलता प्राप्त होती है।
(iii) टरमैन का वर्गीकरण– टरमैन ने बुद्धि-लब्धि के आधार पर वैयक्तिक भिन्त्रता की जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया। उसने बुद्धिलब्धि के अनुसार व्यक्तित्व का वर्गीकरण इस तरह किया है-प्रतिभाशाली, प्रखर बुद्धि, उत्कृष्ट बुद्धि, सामान्य बुद्धि, मन्द बुद्धि, मूर्ख, मूढ़ और जड़ बुद्धि।
(iv) स्टीफेन्सन का वर्गीकरण– स्टीफेन्सन ने युंग के वर्गीकरण को आधार बनाकर व्यक्तित्व का विभाजन दो रूपों में किया है, जिनका उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
- प्रसारक (Perseverator)– जब किसी कार्य के समाप्त हो जाने के बाद भी वह मस्तिष्क में घूमा करता है अथवा उसका प्रभाव देर तक रहता है तो इसे क्रिया-प्रसक्ति (Perseveration) कहते हैं। जिन व्यक्तियों के मस्तिष्क में यह क्रिया काफी देर तक बनी रहती है उन्हें प्रसारक कहा जाता है। इस तरह के व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हैं।
- अप्रसारक (Non-Perseverator)– जिन लोगों के मस्तिष्क में किसी कार्य अथवा बात के समाप्त हो जाने पर उसका प्रभाव देर तक नहीं रहता उन्हें अप्रसारक कहा जाता है। इस तरह के व्यक्ति बहिर्मुखी होते हैं।
(v) भारतीय आचार्यों और मनोवैज्ञानिकों का वर्गीकरण-भारतीय आचार्यों और मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के तीन रूप बताये हैं, जिनका उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
- राजसी– इस तरह के व्यक्तियों में रजोगुण की प्रधानता होती है। उनमें चंचलता, उत्तेजना और क्रियाशीलता अधिक देखी जाती है। वे अत्यन्त वीर, साहसी और युद्धप्रेमी होते हैं।
- सात्विकी– इस तरह के व्यक्ति सौम्य, शान्त एवं धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।
- तामसी– इस तरह के व्यक्तियों में तमोगुण की प्रधानता होती है। वे क्रोधी, लड़ाई-झगड़ा करने वाले, अविश्वासी और धर्म में विश्वास न करने वाले होते हैं।
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