B.Ed. Sem 4- Unit 1 notes
B. Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के चतुर्थ सेमेस्टर के विषय समकालीन भारत एवं शिक्षा (Contemporary India and Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है।
वैदिककाल में शिक्षण संस्था के रूप तथा पाठ्यक्रम (Forms and Curriculum of Educational Institutions)
वैदिककाल में शिक्षण संस्थाओं के रूप (Forms of Educational Institutions)
प्राचीन भारत में अनेक प्रकार की शिक्षण संस्थायें थीं। जिनका संक्षेप में उल्लेख इस प्रकार है-
- टोल– टोल में संस्कृत की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक टोल में एक ही शिक्षक होता था।
- चरण– चरण में वेद के एक अंग की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक चरण में एक ही शिक्षक होता था।
- घटिका– घटिका में धर्म एवं दर्शन की उच्च शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक घटिका में अनेक शिक्षक होते थे।
- गुरुकुल– गुरुकुल में वेद, धर्मशास्त्र, साहित्य आदि की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक गुरुकुल में एक ही शिक्षक होता था।
- परिषद– परिषद में विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती थी और एक परिषद में साधारणतया 10 शिक्षक होते थे।
- विद्यापीठ– विद्यापीठ में व्याकरण एवं तर्कशास्त्र की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक विद्यापीठ में कई शिक्षक होते थे।
- विशिष्ट विद्यालय– विशिष्ट विद्यालय के अन्तर्गत किसी विशिष्ट विषय की शिक्षा प्रदान की जाती थी, जैसे-वैदिक विद्यालय में वेदों की और सूत्र महाविद्यालय में यज्ञ, हवन आदि की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक विशिष्ट विद्यालय में एक ही शिक्षक होता था।
- मन्दिर महाविद्यालय– किसी मन्दिर से सम्बद्ध मन्दिर महाविद्यालय में धर्म, दर्शन, वेद और व्याकरण आदि की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक मन्दिर महाविद्यालय में अनेक शिक्षक होते थे।
- ब्राह्मणीय महाविद्यालय– इस तरह के महाविद्यालय को ‘चतुष्पथी’ के नाम से सम्बोधित किया जाता था क्योंकि इनमें चारों वेदों, शास्त्रों अर्थात् दर्शन, पुराण, कानून और व्याकरण की शिक्षा प्रदान की जाती थी। एक ब्राह्मणीय महाविद्यालय में एक शिक्षक होता था।
- विश्वविद्यालय – उच्च शिक्षा की कुछ संस्थाओं ने कालान्तर में विश्वविद्यालयों का रूप ग्रहण कर लिया। इन विश्वविद्यालयों में धार्मिक शिक्षा के साथ ही चित्रकला, चिकित्साशास्त्र आदि की भी शिक्षा प्रदान की जाती थी।
वैदिककालीन शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum) :
वैदिक संहिताओं के अध्ययन के साथ-साथ व्याकरण, गणित, काव्य, दर्शन, इतिहास, अर्थशास्त्र आख्यायिका, राजनीति, कृषि, विज्ञान, वास्तु-कला, शिल्पकला, चित्रकला, सैन्य-शिक्षा, पशु-विज्ञान, आयुर्वेद, शल्य-विज्ञान, न्यायशास्त्र व गृहशास्त्र आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। इस प्रकार शिक्षा एकांगी न होकर सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध हुई है। पाठ्यक्रम की कुछ निम्न विशेषताएँ थीं-
- वित्तीय विषयों का समावेश– ब्राह्मण काल के पाठ्यक्रम में शिक्षा विषय वैविध्य थी और सभी विषयों का स्थान पाठ्यक्रम में निर्धारित था। चारों संहिताओं के अतिरिक्त भी सभी विद्याओं का समावेश था। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत पिंगलशास्त्र को भी स्थान दिया गया था।
- धार्मिक तत्त्वों की अधिकता– ब्राह्मणीय शिक्षा में धार्मिक तत्त्वों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ था। गुरुकुल में प्रवेश लेने के बाद प्रत्येक ब्रह्मचारी को वेदमंत्र, प्रार्थना तथा संध्या आदि सम्बन्धी श्लोक कंठस्थ करा दिये जाते थे। पाठ्यक्रम में यज्ञ, हवन इत्यादि कर्मकांडों की भी महत्ता थी।
- पुराण व इतिहास का समावेश– वैदिक साहित्य की प्रधानता के साथ पुराण व इतिहास को भी प्रधानता मिली। अथर्ववेद के अनुसार उस समय के शिक्षाशास्त्री वीरगाथा को महत्त्व देते थे।
- यज्ञ विषयक साहित्य निर्माण– आश्रमों में रहने वाले प्रत्येक ब्रह्मचारी को यज्ञ करने की विधि का पूर्ण ज्ञान कराया जाता था। पुरोहितवाद का बोलबाला दिन-प्रतिदिन होने लगा।
- पिंगल का समावेश गुरु अपने शिष्यों को पिंगल का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि वह शुद्धतापूर्वक मंत्रों को कंठस्थ कर सकें।
प्रत्येक वर्ण के लिए पाठ्य-विषय भी वर्णानुसार ही थे। शिक्षा के पाठ्यक्रम ने मानव के प्रत्येक क्षेत्र को प्रकाशमान किया। उस समय आध्यात्मिक उन्नति को भौतिक उन्नति से ऊँचा स्थान दिया गया। आध्यात्मिक उन्नति से ही शांति प्राप्त हो सकती है।