प्रयोग (Experiments): अर्थ, परिभाषा, विशेषता, लाभ और हानि

अर्थ (Meaning)

प्रयोग से तात्पर्य उस निरीक्षण या तरीके से है जिसके द्वारा एक प्रयोगकर्ता नियंत्रित अवस्थाओं में व्यक्ति की अनुभूतियों व व्यवहारों का अध्ययन करता है। अर्थात् यह एक ऐसा निरीक्षण है जिसमें एक स्वतंत्र चर (Independent Variable) के घटाने- बढ़ाने से परतंत्र या आश्रित चर (Dependent Variable) पर पड़ने वाले प्रभावों का नियंत्रित दशाओं (Controlled Conditions) में अध्ययन किया जाता है।

उदाहरण के लिए- माना हम यह ज्ञात करना चाहते हैं कि सीखने की प्रक्रिया पर वातावरण का क्या प्रभाव पड़ता है? यहाँ, ‘वातावरण’ एक ‘स्वतंत्र चर है। इसके अलावा अन्य कारक भी हैं जैसे- आयु, बुद्धि, विषय-वस्तु, स्वास्थ्य आदि। ये भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। लेकिन चूंकि हमें वातावरण के प्रभाव को सीखने की प्रक्रिया पर देखना है इसलिए वातावरण के अन्य कारकों को नियंत्रित कर देंगें।

परिभाषाएं (Definitions)

इसकी कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

उपर्युक्त परिभाषाओं के अतिरिक्त W.S. Monroe, M.D. Engelhart, John W. Best, और Festinger ने भी प्रयोग की कई परिभाषाएँ दी हैं जिसके आधार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि यह एक निरीक्षण है। प्रयोग के अंतर्गत प्रयोगकर्ता द्वारा ऐसी परिस्थितियाँ, प्रयोगशाला में उत्पन्न करायी जाती है, जिससे अभीष्ट व्यवहार घटित हो। प्रयोगकर्ता नियंत्रित दशाओं में परिवर्तन करके निष्कर्ष के परिवर्तनों को ज्ञात कर सकता है।

विशेषताएँ (Characteristics)

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. प्रयोग एक क्रमबद्ध अध्ययन है।
  2. इसको नियंत्रित वातावरण में किया जाता है।
  3. प्रयोग एक ऐसा निरीक्षण है जिसमें एक स्वतंत्र चर में परिवर्तन करके उसका प्रभाव आश्रित चर (dependent variable) पर देखते हैं। 
  4. इसमें हम सिर्फ उन दशाओं को उत्पन्न करते है जो अभीष्ट व्यवहार के लिए आवश्यक हो।
  5. निष्कर्ष की पुष्टि के लिए प्रयोग की पुनरावृति की जा सकती है।
  6. इसमें हम प्रभावों को देखते हैं, उनके कारणों को नहीं। जैसे- हम प्रयोग करके आर्सेनिक का प्रभाव जानवरों पर ज्ञात कर सकते हैं लेकिन यदि हम मृत जानवरों पर इसका इस्तेमाल करते हैं तो प्रयोग के द्वारा हम उसके कारणों को नहीं निर्धारित कर सकते हैं।
  7. प्रयोग को हम नियंत्रित परिस्थिति में करते हैं इसलिए बार- बार दोहराए गए प्रयोगों के परिणामों में काफी संगति एवं स्थिरता होती है।

चर (Variable)

जिन वस्तुओं का निरीक्षण करना होता है, उसे चर कहते हैं। चर के लिए दो बातें आवश्यक हैं एक कि उसमें परिवर्तन सम्भव हो और उसे मापा जा सके। दूसरा वह स्वयं प्रभावित कर सके या हो सके और उसे मापा जा सके। जिस कारक में ये दोनों विशेषताएँ पायी जाती है उसे चर (variable) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, चर वह कारक है जिसे एक प्रयोग में नियंत्रित, परिवर्तित या माप सकते हैं। प्रयोगकर्ता अनुभूति व व्यवहारों को प्रभावित करने वाले कारकों पर नियंत्रण रखता है और केवल उसी तत्व को अनियंत्रित रखता है जिसके प्रभाव का अध्ययन करना होता है। इन्हीं तत्वों को ‘प्रयोगात्मक चर’ कहते हैं।

चर दो प्रकार के होते हैं-

1. स्वतंत्र चर या प्रयोगात्मक चर (Independent variable / Experimental Variable)

स्वतंत्र चर वे हैं जिनको परिवर्तित (manipulate), किया जाता है, मापा जाता है तथा प्रयोगकर्ता द्वारा चुना जाता है। इन चरों का उद्‌देश्य आश्रित चरों में निरीक्षणात्मक परिवर्तनों को उत्पन्न करना है। प्रयोग में सामान्यतः एक ही स्वतंत्र चर को परिवर्तित किया जाता है। 

2. आश्रित चर (Dependent variable / Criterian Variable)

परतंत्र या आश्रित चर वे हैं जिन पर स्वतंत्र चर के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। किसी भी प्रयोग में केवल एक स्वतंत्र चर होता है, जबकि ‘एक या अधिक आश्रित चर’ हो सकते हैं। आश्रित चर एक्ट्रोजिनस चर पर भी निर्भर करते हैं। अतः यह आवश्यक है कि स्वतंत्र चर जिसके प्रभाव का अध्ययन करना होता है उसे छोड़कर शेष को नियंत्रित (controlled) या स्थिर (constant) कर लेते हैं।

प्रयोग के लाभ और हानि

लाभ

  1. प्रयोग नियंत्रित परिस्थितियों में किया जाता है।
  2. स्वतंत्र चर पर प्रयोग करते है तथा इसका प्रभाव आश्रित चर पर देखते हैं तथा बाह्य चर (extraneous) को नियंत्रित करते हैं।
  3. समय की दृष्टि से यह मूल्यांकन की उचित विधि है।
  4. यह एक वैज्ञानिक विधि है तथा इसके द्वारा किसी समस्या को तार्किक आधार पर हल करते हैं।
  5. इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष सही है या नहीं, इसे जानने के लिए हम पुनः प्रयोग कर सकते हैं। अर्थात् प्रयोग की पुनरावृति भी की जा सकती है।
  6. इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अन्य पद्धतियों से प्राप्त निष्कर्षों की अपेक्षा विश्वसनीय (Reliable) और वैध (Valid) होते हैं।
  7. इस विधि द्वारा प्राप्त डाटा प्रमाण योग्य (verifiable) होता है।
  8. इसके द्वारा भविष्यवाणी (forcasting) तथा पूर्व कथन भी आसानी से दिए जा सकते है

हानियाँ

  1. प्रयोग हमेशा जीवित व्यक्तियों के व्यवहार के अध्ययन के लिए करते है अर्थात् जीवित व्यक्तियों पर करते हैं इस कारण चरों को नियंत्रित करना कठिन रहता है।
  2. यह विषयी के संवेगों (Emotions), रुचियों तथा प्रवृतियों (attitudes) को प्रभावित करता है जिससे निष्कर्ष या प्राप्त आंकड़ों पर प्रभाव पड़ता है।
  3. यह हमेशा नियंत्रित या बनावटी परिस्थितियों में किया जाता है। मानव व्यवहार को इस परिस्थितियों के लिए पूर्ण रुप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
  4. इसमें प्रयोगकर्ता सामान्यतः निम्न चरों जैसे- आयु, लिंग (sex), IQ तथा विषयी की क्षमताओं तथा योग्यताओं को नियंत्रित करता है तथा अन्य बाहरी (extraneous) चरों को छिपा लेता है।
  5. इस प्रकार इन परिस्थितियों के अंतर्गत प्रयोग के निष्कर्ष बड़े समूह के लिए मान्य नहीं होता है। अर्थात् बड़े समूह पर प्रयोग को लागू नहीं जा सकता है।
  6. इसमें विषयी पूरी तरह प्रयोगकर्ता के साथ सहयोग करे यह आवश्यक नहीं है।

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