वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के गुण एवं विशेषताएँ (Merits and Characteristics of Objective Tests)

B.Ed. Sem 3- Unit 2 notes

B.Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के तृतीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation in Education) के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 
वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के गुण एवं विशेषताएँ (Merits and Characteristics of Objective Tests)

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के गुण एवं विशेषताएँ (Merits and Characteristics of Objective Tests)

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के अर्थ तथा प्रकार के बारे में हम यहाँ पढ़ चुके हैं। आज के लेख में हम जानेंगे कि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में कौन से गुण व विशेषताएँ पाई जाती हैं। इसके अर्थ के द्वारा हम जान चुके हैं कि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में प्रायः वे समस्त गुण व विशेषताएँ पाई जाती हैं जो कि एक अच्छी परीक्षा में निहित रहती हैं। ये गुण व विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) प्रामाणिकता (Validity)– अच्छे परीक्षक की प्रथम विशेषता होती है उसमें प्रामाणिकता या वैधता का पाया जाना जो परीक्षण की विशेषता से सम्बंधित होता है, जिस विशेषता का अध्ययन या मापन करने के लिए परीक्षण का निर्माण किया जाता है अध्ययन में वही विशेषता मापी जाती है। उदाहरण के लिए यदि बुद्धि-मापन के लिए कोई परीक्षण निर्माण किया जाता है तो वह बुद्धि का मापन करे न कि अर्जित योग्यता या शिक्षा का।

(2) विश्वसनीयता (Reliability)– एक अच्छे परीक्षण की दूसरी विशेषता है उसमें विश्वसनीयता का होना। विश्वसनीयता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसमें कोई परीक्षण दुबारा, तिबारा या जितनी बार आवश्यकता पड़े उसे व्यक्तियों पर प्रयोग किया जाए तो हर बार, पहली बार की तरह फलांक (Scores) प्राप्त हों। ऐसा न हो कि पहले बार 60, दूसरी बार 40 तथा तीसरी बार 79 फलांक या अंक प्राप्त हों। परीक्षण की इसी विशेषता के कारण ही किसी परीक्षण का फल प्रतिपन्न (Accurate) तथा एकरस (Consistent) होता है।

(3) वस्तुनिष्ठता (Objectivity)– वस्तुनिष्ठता या विधायकता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण परीक्षण के प्राप्तांकों का बालकों पर परीक्षक की रुचि इत्यादि का कोई प्रभाव नहीं पड़ पाता है। इस विशेषता के लिए यह आवश्यक है कि परीक्षण के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर निश्चित तथा स्पष्ट हो जिसके विषय में परीक्षकों में किसी प्रकार का मतभेद न हो।

(4) प्रमाणीकरण (Standardization)– प्रमाणीकरण का तात्पर्य किसी परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार परीक्षण के निर्देशन, प्रश्न-परीक्षण की विधि तथा जाँचने का तरीका इत्यादि पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है। ऐसा करने से विभिन्न व्यक्तियों के प्राप्तांकों की विभिन्न समय तथा स्थानों पर तुलना की जा सकती है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रमाणीकरण होने पर ही उनमें विश्वसनीयता (Reliability) तथा प्रमाणिकता (Validity) की विशेषताएँ प्राप्त होती हैं।

(5) व्यापकता (Comprehensiveness)– व्यापकता का अभिप्राय परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार जिस योग्यता के मापन के लिए परीक्षण का निर्माण किया गया है, उसके समस्त पहलुओं से सम्बन्धित प्रश्न के परीक्षण-पद (Tests terms) निर्धारित किए जाएँ। ऐसा नहीं होना चाहिए जैसा कि आजकल परम्परागत परीक्षाओं में पाठ्यक्रम के केवल थोड़े से भागों से प्रश्न पूछे जाते हैं।

(6) विभेदकारी शक्ति (Discriminating Power)– विभेदकारी शक्ति का अभिप्राय परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार अच्छे तथा कमजोर विद्यार्थियों में अन्तर मालूम किया जा सके। परीक्षण में यह विशेषता होनी चाहिए कि अच्छे विद्यार्थियों को अधिक अंक प्राप्त हों और कमजोर विद्यार्थियों को कम अंक प्राप्त हों। ऐसा नहीं होना चाहिए कि अच्छे और कमजोर विद्यार्थी दोनों समान अंक पायें।

(7) सामान्यक (Norms)– प्रमाणीकरण का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग प्रमाणीकरण न्यादर्श (Standardization Sample) है। न्यादर्श का तात्पर्य उस जन-समूह से है जो कि उस सम्पूर्ण जनसंख्या (Total Population) का पूर्णरूपेण प्रतिनिधित्व करे जिसके सदस्यों को भविष्य में मापन का अध्ययन करना है- के परीक्षाफल के आधार पर सामान्यकों (Norms) को तैयार करना ताकि भविष्य में जिस व्यक्ति का मापन किया जाए उसके सम्बन्ध में जाना जा सके कि वह उस न्यादर्श (Sample) की तुलना में उत्तम, औसत के ऊपर, औसत के नीचे या निम्नतम बैठता है।

(8) मितव्ययिता (Economy)– अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की भारत जैसे निर्धन देशों के लिए महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसके निर्माण तथा क्रियान्वित करने में समय तथा धन का कम व्यय हो। दिन भर चले अढ़ाई कोस का किस्सा चरितार्थ होने से फायदा ही क्या है।

(9) व्यावहारिकता (Practicability)– व्यावहारिकता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण यह सरलतापूर्वक प्रयोग किया जा सके। इसके लिए उसमें सरल आदेश तथा जाँचने की विधि सुलभ होनी चाहिए।

(10) रुचिदायक (Interesting)– कोई परीक्षण तभी अपने उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है जबकि वह परीक्षक तथा परीक्षार्थी दोनों को रुचिपूर्ण प्रतीत हों, क्योंकि ऐसा होने से परीक्षार्थी तो अपने कार्य को अच्छी तरह सम्पादित करेगा साथ-ही-साथ परीक्षक भी अपना पूरा सहयोग देगा जिससे कि मापन करने वाली विशेषता की वास्तविक झलक प्राप्त हो जाएगी।

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