B.Ed. Sem 4- Unit 1 notes
वुड घोषणा-पत्र के गुण तथा दोष (Merits and Demerits of Wood's Despatch)
वुड घोषणा-पत्र के गुण (Merits of Wood's Despatch)
- इसी घोषणा-पत्र से भारतीय शिक्षा के इतिहास का एक नवीन युग आरम्भ होता है। इसे भारत में शिक्षा का अधिकार-पत्र (Magnacharta of English Education in India) भी कहा गया है।
- प्रथम बार ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने भारतीय शिक्षा नीति का निर्धारण करके उसको वैधानिक रूप देने का प्रयास किया।
- इस छोषणा पत्र के आने से पहले तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालकों की भारतीय शिक्षा सम्बन्धी कोई भी निश्चित नीति नहीं थी। इस घोषणा-पत्र द्वारा उन्होंने पहली बार अपनी शिक्षा सम्बन्धी नीति का निर्धारण किया।
- इस घोषणा-पत्र में पहली बार भारतीय शिक्षा के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुये उसे एक निश्चित मार्ग की ओर अग्रसर किया गया।
- इस घोषणा-पत्र में यह बात प्रथम बार कही गई कि भारत में शिक्षा के प्रसार का उत्तरदायित्व अंग्रेज सरकार पर है। अन्यथा इसके पूर्व कभी यह बात नहीं मानी गई थी।
- इस समय के बाद अब अंग्रेज सरकार भारतीय शिक्षा को शासन का एक महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य मानने लगी थी।
- वुड घोषणा-पत्र ने शिक्षा में छनाई के सिद्धान्त को स्वीकार करके इसे भारतीय शिक्षा के लिए सर्वथा अनुपयुक्त माना है तथा जनशिक्षा को प्रोत्साहित करने की ओर सक्रिय ध्यान दिया है।
- इस शिक्षा योजना में प्रथम बार विस्तृत शिक्षा योजना की रूपरेखा प्रस्तुत कर उसने सभी प्रश्नों पर ध्यान देते हुये प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा पर विचार किया गया है।
- घोषणा-पत्र में भारतीय संस्कृति के गुण और महत्त्वों को मानते हुये उसकी उपादेयता स्वीकार की गई तथा सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीयों के लिए भारतीय संस्कृति को स्थान दिया गया है।
- मैकाले ने एक ओर भारतीय साहित्य तथा देशी भाषाओं की आलोचना की है तथा उनकी आलोचना से उन्हें व्यर्थ सिद्ध कर दिया था, दूसरी तरफ उसने घोषणा-पत्र में इनके महत्त्व को स्वीकार किया। यहाँ तक कि देशी भाषाओं को उसके पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान भी दिया।
- वुड ने भारतीय भाषाओं में भी पुस्तकें लिखवाने की व्यवस्था करने का सुझाव दिया है।
- घोषणा-पत्र में भारतीय साहित्य की वृद्धि पर ध्यान देते हुये यह व्यवस्था की गई कि यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान का देशी भाषाओं में अनुवाद करने के लिए पुरस्कार भी दिया जाना चाहिए।
- प्रत्येक प्रान्त में शिक्षा विभाग (Education Department) की स्थापना करके उसमें शिक्षा संचालक, निरीक्षक तथा उपनिरीक्षकों की नियुक्ति करके शिक्षा विभाग को एक सुव्यवस्थित तथा सुगठित रूप प्रदान करने की बात कही गई जिससे कि भारतीय शिक्षा का विकास सुचारु रूप से हो सके।
- घोषणा-पत्र में प्राथमिक विद्यालयों के पुनरुत्थान की ओर भी सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया है।
- वुड ने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं को भी स्वीकार किया और अंग्रेजी माध्यम को उन्हीं लोगों के लिए उपयुक्त माना है जो उसका पर्याप्त ज्ञान रखते हों।
- उच्च शिक्षा की प्रगति के लिए विश्वविद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया गया। कलकत्ता, मुम्बई और मद्रास में विश्वविद्यालय खोले गये।
- उच्व माध्यमिक विद्यालयों की संख्या में वृद्धि करने की बात कही गई।
- बेकारी की समस्या को दूर करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया गया।
- स्त्री शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया गया।
- शिक्षा विस्तार के लिए व्यक्तिगत संस्थानों को सहायता अनुदान दिया गया इससे व्यक्तिगत शिक्षा प्रयासों को बड़ा बल मिला।
- निर्धन और योग्य छात्रों के लिए छात्रवृत्ति का प्रबन्ध किया गया। सरकारी नौकरियों में शिक्षित व्यक्तियों को ही प्रधानता दी गई। इससे अध्ययन की ओर सबकी रुचि बढ़ने लगी।
- शिक्षकों का वेतन बढ़ाकर अधिक-से-अधिक लोगों को शिक्षा कार्य की और आकृष्ट किया गया।
- जेम्स ने इस घोषणा-पत्र को भारतीय शिक्षा के इतिहास में पूर्व और उत्तर-काल के जोड़ों की कड़ी मानते हुये कहा है कि भारतीय शिक्षा के इतिहास में जो कुछ इसके पूर्व या बाद में हुआ वह इसकी ओर संकेत करता है और जो कुछ इसके बाद हुआ वह इसी से ही निकला है।
- हेम्पटन ने भी कहा है कि 1854 ई. का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा के एक युग की समाप्ति करता है जिसमें कि शिक्षा के महान् अग्रदूत अवतीर्ण हुये।
- लार्ड डलहौजी के अनुसार इस घोषणा-पत्र में शिक्षा की व्यापक और विशद योजना प्रस्तुत की गई जिसको प्रस्तुत करने में प्रान्तीय तथा केन्द्रीय सरकारें कभी भी सफल न हो पातीं।
- बसु के कथनानुसार वुड का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा का मूलाधार है और यदि विचारपूर्वक देखा जाये तो भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली का शिलान्यास इसी से हुआ।
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वुड घोषणा-पत्र के दोष (Demerits of Wood's Despatch)
(1) इस घोषणा-पत्र में भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श माना गया। इस तरह प्राचीन विश्वविद्यालयों की उपेक्षा की गई है।
(2) विश्वविद्यालय सीनेट के सभी सदस्यों को सरकार नामित करती थी इसलिए अक्सर ऐसे मामले होते थे जब शिक्षा की समस्याओं से अनभिज्ञ लोग सीनेट के सदस्य बन जाते थे। इससे लाभ की जगह हानि होती थी।
(3) घोषणा-पत्र में शिक्षा को पूरी तरह से राज्य के अधीन कर दिया गया और उस पर शासन का आधिपत्य स्थापित हो जाने से प्राचीनकाल से प्रचलित स्वतन्त्र कार्य की समाप्ति हो गई।
(4) सरकारी नौकरियों में सुशिक्षित व्यक्तियों को ही प्राथमिकता देने के कारण शिक्षा का व्यापक उद्देश्य नष्ट हो गया और अब शिक्षा केवल जीविकोपार्जन तक ही सीमित रही।
(5) इस घोषणा-पत्र के अनुसार अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता मिलती थी, इसलिये जहाँ कि देशवासियों की रुचि अंग्रेजी की ओर अधिक बढ़ी वहाँ इससे यह हानि भी हुई कि प्राचीन संस्थाएँ बन्द होने लगीं।
(6) यद्यपि वुड ने प्राच्य साहित्य और देशी भाषाओं को संरक्षण देने की बात कही परन्तु साथ ही उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाये अतः लोगों का ध्यान यूरोपीय साहित्य और विज्ञान पर ही अधिक रहा और दिन-प्रतिदिन देशी भाषाओं की प्रगति अवरुद्ध होने लगी।
(7) हमारी संस्कृति में धर्म को प्रमुख स्थान दिया जाता रहा और हमारी प्राचीन शिक्षा में धर्म की ही प्रधानता भी थी पर वुड ने धर्म को शिक्षा से पृथकू कर शिक्षा में धर्म की अवहेलना की है। इस सम्बन्ध में डॉ. एस. एन. मुकर्जी का कथन है कि “घोषणा-पत्र ने देश की प्राचीन परम्पराओं का पता नहीं लगाया और इस बात पर जरा भी विचार नहीं किया कि भारत में शिक्षा धार्मिक संस्कार था।”
(8) इस घोषणा-पत्र में भारतीय शिक्षा को धार्मिक मान्यताओं से पृथक करने का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि भारतीयों ने अध्यात्मवाद को भुला दिया।
(9) वुड ने संस्कृत, अरबी और फारसी आदि भाषाओं की उपादेयता अवश्य स्वीकार की है पर लार्ड मैकाले की भाँति उसने भी शिक्षा का उद्देश्य पाश्चात्य ज्ञान का प्रसार ही माना, भारतीयों के लिए पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को उचित कहा है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से संस्कृत, अरबी और फारसी का महत्त्व कम कर दिया है।
(10) शिक्षा-विभाग की स्थापना करके शिक्षा पद्धति में जो लचीलापन ला दिया गया था वह नष्ट हो गया तथा इस प्रकार भारतीय शिक्षा यांत्रिक हो गयी क्योंकि शिक्षण संस्थाएँ अब अपना कार्य शिक्षा अधिकारियों की आज्ञाओं का पालन करना समझती थीं, तथा शिक्षा के प्रति उनका अपना कोई मौलिक उत्साह नहीं रह गया।
(11) इस घोषणा-पत्र ने शिक्षा के ढाँचे को पूर्णतः विदेशी कर दिया तथा पाश्चात्य शिक्षा को समाप्त करने के लिए भारतीयों को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये जाने लगे। इसलिये देशी शिक्षा प्रणाली और शिक्षा प्रसार में उनकी लेशमात्र रुचि न रही।
(12) व्यावसायिक शिक्षा संस्थाओं का निर्माण बाह्य रूप से दिखाने के लिए तो भारतीयों के हित के लिए था, लेकिन सत्य यह है कि यह योजना भारतीयों को ध्यान में रखकर नहीं बनी थी।
(13) अंग्रेजी शिक्षा ने पाश्चात्य धर्म और साहित्य का ही अधिक प्रचार किया।
(14) भारतीय भाषाओं से सम्बन्ध रखने वाली शिक्षा संस्थाओं को महत्त्वहीन समझा जाने लगा। लोगों का उत्साह उधर से कम होने लगा। इसलिये इन विद्यालयों की प्रगति अवरुद्ध होती गई।
(15) शिक्षा माध्यम अंग्रेजी बना देने के कारण विद्यार्थियों को इतिहास, भूगोल, गणित तथा अन्य सभी विषय पढ़ाये जाते थे, लेकिन इन विषयों का पूर्ण ज्ञान लोग अंग्रेजी के पूर्ण ज्ञान के अभाव में नहीं प्राप्त कर पाते थे।
(16) किसी विषय को समझने की अपेक्षा रटकर परीक्षा पास करना अपना उद्देश्य छात्रों ने बना लिया। बाजार में इसकी पूर्ति के लिए टीकाओं और कुंजियों का आधिक्य हो गया था।
(17) शिक्षा की इस प्रणाली में परीक्षाओं को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया। इससे छात्रों ने परीक्षा पास करना ही अपना उद्देश्य बना लिया।
(18) इस घोषणा-पत्र में असाम्प्रदायिक शिक्षा की ओर संकेत कर धर्म-निरपेक्षता का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है किन्तु धर्म-प्रचारकों के प्रति वह निष्पक्ष न रहा और उसमें स्पष्टतः यह माना गया है कि ईसाई मत की पुस्तकें राजकीय विद्यालयों के पुस्तकालयों में रखी जा सकती हैं।
(19) छात्रों के पुस्तकालय में रखी बाइबिल को स्वतन्त्रतापूर्वक पढ़ने और ईसाई धर्म के विषय में प्रश्न करने पर अध्यापकों को उनका उत्तर देने का निर्देश किया गया। इस तरह बाइबिल पढ़ने और ईसाई मत पर प्रश्न करने की पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई।
(20) सर फिलिप हर्टांग ने वुड के घोषणा-पत्र की प्रशंसा करते हुए उसे भारत के कल्याण के लिए बुद्धिमत्ता का विकास करने वाली नीति का निर्धारक कहा था, परन्तु विद्वानों ने इस मत का खंडन किया है और कहा है कि यह घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा की व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं देता और न ही राज्य पर कोई ऐसा बन्धन लगता है जिससे कि वह एक निश्चित सीमा के सभी बालकों की शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दे सके। इतना ही नहीं वह शिक्षा के रास्ते में होने वाली सबसे बड़ी बाधा निर्धनता को दूर करने की व्यवस्था नहीं करता।