वैदिककालीन शिक्षा प्रणाली तथा वैदिक काल में शिक्षा के उद्देश्य B.Ed. Sem 4- Unit 1
वैदिककालीन शिक्षा प्रणाली:
वैदिक काल की शिक्षा प्रणाली में गुरु तथा शिष्य दोनों सक्रिय रहते थे। गुरु के कहे गये कथन को शिष्य सुनकर बैठ नहीं सकते थे बल्कि तुरन्त ही उसे कार्य रूप में परिणत कर देता था। शिष्य गुरु से अपनी समस्या का समाधान कराते थे। गुरु शिष्यों के सम्मुख समस्या उपस्थित कर उन्हें मनन, चिंतन तथा अध्ययन करने का अवसर प्रदान करते थे। शिष्यों को भी गुरु से प्रश्न पूछने का अधिकार था। वे अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए गुरुओं से प्रश्न पूछते थे। यह शिक्षा वाणी द्वारा दी जाती थी। उस समय मुद्रण यंत्रों का आविष्कार नहीं हुआ था। वैदिक काल की प्रमुख शिक्षण प्रणालियाँ थीं-
(क) प्रश्न-उत्तर विधि
(ख) भाषण-विधि
(ग) सूक्ति विधि
(घ) अन्योक्ति विधि
(ङ) कथाविधि
(च) सेमिनार विधि
वैदिक काल में शिक्षा के उद्देश्य
वैदिक काल में शिक्षा के कई उद्देश्य थे जो निम्नलिखित हैं-
- प्राचीन वैदिक शिक्षा बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह मुक्त थी और उसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था।
- इस समय सार्वजनिक और निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी थी।
- शिक्षा केवल पुस्तकीय न होकर व्यावसायिक थी जो विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिए तैयार करती थी।
- इस युग की शिक्षा की प्रमुख विशेषता गुरुकुल प्रणाली थी। यह गुरुकुल नगर के कोलाहल से दूर किसी निर्जन स्थान पर होते थे।
- पाँच से आठ वर्ष की अवस्था में उपनयन संस्कार के बाद बालकों की शिक्षा का प्रारम्भ होती थी। गुरु और शिष्य के बीच पिता और पुत्र जैसे संबंध थे।
- ब्रह्मचर्य पर विशेष बल दिया जाता था।
- इस शिक्षा में धार्मिक तत्त्वों को विशेष महत्त्व दिया जाता था।


