स्कूल पाठ्यक्रम में विज्ञान का स्थान (Place of Science in School Curriculum) 

B.Ed. Sem 2- Unit 1 notes

B. Ed. के द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम के द्वितीय सेमेस्टर के विषय शिक्षा में अनिवार्य प्रश्न पत्र, विज्ञान (Science) विषय के सभी Unit के कुछ महत्वपुर्ण प्रश्नों का वर्णन यहाँ किया गया है। 

स्कूल पाठ्यक्रम में विज्ञान का स्थान (Place of Science in School Curriculum) 

विज्ञान को स्कूल के पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए। इसी के सन्दर्भ में समनर ने लिखा है,
“भविष्य उसी मानव जाति के हाथों में सुरक्षित रह सकता है जो उस परिवर्तन के महत्त्व को समझती है, जो वैज्ञानिक खोजों के फलस्वरूप आया है। कोई भी राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री या अर्थशास्त्री उनकी अवहेलना नहीं कर सकता।” 
इनके इस कथन से यह स्पष्ट है कि यदि विज्ञान को आधुनिक युग में पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं दिया जायेगा तो हमारे विद्यार्थी आगे चलकर कुछ नहीं कर सकेंगे। विज्ञान का शिक्षण विभिन्न दृष्टिकोणों से उपयोगी है। उसकी वैयक्तिक और सामाजिक दोनों ही प्रकार की महत्ता है। सांस्कृतिक क्षेत्र में भी विज्ञान शिक्षण का विशेष महत्त्व है। यहाँ हम विभिन्न दृष्टिकोणों से पाठ्यक्रम में विज्ञान के महत्त्व की चर्चा कर रहे हैं:
(1) मानसिक अनुशासन में सहायक– विज्ञान (Science) का शिक्षण मानसिक अनुशासन में अत्यधिक सहायक होता है। बालकों को इस प्रकार के विषय पढ़ाये जाने चाहिए जिससे कि उनकी मानसिक शक्तियों का विकास हो सके। यह एक ऐसा ही विषय है। 
 
(2) पर्यवेक्षण एवं तर्कशक्ति का विकास– इसकी शिक्षा द्वारा बालक की पर्यवेक्षण एवं तर्कशक्ति का विकास होता है। इससे बालक अपने दैनिक कार्यों में भी सचेत और नियमित हो जाता है। विज्ञान की शिक्षा से बालक में सूक्ष्म पर्यवेक्षण तथा प्रयोगों पर आधारित स्पष्ट निर्णय पर पहुँचने की आदत बन जाती है जो उसके चरित्र निर्माण में बहुत अधिक सहायक सिद्ध होती है। 
(3) वैयक्तिक जीवन में उपयोगिता– हम जान चुके हैं कि हमारे व्यावहारिक जीवन में विज्ञान की जानकारी की अत्यधिक आवश्यकता होती है। विज्ञान के अध्ययन से केवल दैनिक जीवन में सहायता नहीं मिलती बल्कि इसका अध्ययन इसलिये भी आवश्यक है कि इसके बिना जीवनहानि की सम्भावना हो सकती है। विज्ञान की समुचित जानकारी न रखने वाला व्यक्ति ऐसे कार्य करेगा जिससे वह बीमार पड़ सकता है या दूसरों के लिए दुःखदायी बन सकता है। इन परिस्थितियों में विद्यालय के पाठ्यक्रम में विज्ञान (Science) विषय की अवहेलना की बात कौन सोच सकता है। तेजी से बदलती इस दुनिया में वही व्यक्ति अपना स्थान प्राप्त कर सकता है जिसका दृष्टिकोण और चीजों को समझने की क्षमता वैज्ञानिक हो। 
 
(4) जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सहायक– यह बात भी व्यावहारिक महत्त्व के अन्तर्गत ही आती है। हम अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं को विज्ञान के माध्यम से सुलझा सकते हैं। इसलिए विद्यालय में इसकी शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। 
 
(5) रिक्त समय के लिए उपयोगी– वैज्ञानिक ज्ञान रिक्त समय के लिए अत्यन्त उपयोगी है। हम अपने समय का समुचित उपयोग विज्ञान के ज्ञान को प्राप्त करके कर सकते हैं। इस कारण भी विद्यालयों में इसका शिक्षण अत्यन्त आवश्यक होता है। 
 
(6) सांस्कृतिक मूल्य– विज्ञान-शिक्षा का सांस्कृतिक मूल्य भी है। वैज्ञानिकों की जीवनी का अध्ययन करके व्यक्ति अपने जीवन को सुचारु रूप से ढालता है। उसका नैतिक मूल्य भी है। वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत सुविधाओं से लाभ उठाकर हम मानव जाति की सेवा कर सकते हैं। समाज-कल्याण की कुंजी विज्ञान रूपी बक्से में ही है। वैज्ञानिक प्रगति के बिना सामाजिक कल्याण की बात करना मूर्खता है।  
 
(7) अनुशासनात्मक महत्त्व– विज्ञान (Science) का अनुशासनात्मक महत्त्व भी बहुत अधिक है। विज्ञान की शिक्षा द्वारा बालक अपने व्यर्थ के पूर्वाग्रहों को त्याग देता है और फलस्वरूप उसमें अनुशासन की भावना आती है तथा उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। इसकी शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति अपने समस्त कार्य नियमानुसार करने लग जाता है। 
 
(8) नैतिक विकास में सहायक– कुछ लोगों यह मानते हैं कि विज्ञान के फलस्वरूप व्यक्ति नास्तिक हो जाता है, परन्तु यह उचित नहीं है।बल्कि इसके कारण व्यक्ति नास्तिक न होकर धार्मिक बनता है क्योंकि विज्ञान के अनुसरण से उसकी श्रद्धा, प्रकृति और परमेश्वर में बढ़ जाती है। विश्व की समस्त वस्तुओं की एकरूपता में उसका विश्वास दृढ़ हो जाता है। उसकी विचार विवेचन और निर्माण शक्ति बढ़ जाती है। विज्ञान (Science) के फलस्वरूप मनुष्य में आत्मनिर्भरता, अध्यवसाय एवं सत्य के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है। 
 
(9) व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास– विज्ञान के शिक्षण द्वारा व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास होता है। बालक में निष्पक्षता की विचारधारा उत्पन्न होती है। वह किसी बात को तब तक स्वीकार नहीं करता जब तक कि वह प्रयोग द्वारा सिद्ध न हो जाय। विज्ञान की शिक्षा से उसका एकांगी दृष्टिकोण समाप्त होता है उसमें करके सीखने की प्रवृत्ति का विकास होता है जो उसके बहुमुखी व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। 
 
ऊपर दिए गए कथनों से यह स्पष्ट है कि आधुनिक युग में स्कूलों के पाठ्यक्रम में विज्ञान (Science) का प्रमुख स्थान होना चाहिए। इस युग में विज्ञान (Science) के विषय के तिरस्कार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जो देश अपने विद्यालयों के पाठ्यक्रम में विज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं देता, उसका भविष्य अन्धकारमय है। ऐसी स्थिति में कोई भी शिक्षाविद् अथवा राष्ट्र का कर्णधार विज्ञान को पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान न देने की बात नहीं सोच सकता। भारत जैसे देश के लिए तो विज्ञान शिक्षण ही उन्नति की एकमात्र आधारशिला है।

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